Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 54.

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

छे, पुद्गलद्रव्य पण पोताना अचेतन लक्षणरूपेशुद्ध परमाणुरूपे अथवा ज्ञानावरणादि कर्मपिंडरूपे पोतानामां व्याप्य-व्यापकपणे परिणमे छे, वस्तुनुं स्वरूप एवुं तो छे परंतु जीवद्रव्य अने पुद्गलद्रव्य बंने मळीने, अशुद्ध चेतनारूप छे जे राग-द्वेषरूप परिणाम ते-रूपे परिणमे छे एम तो नथी; अथवा जीव अने पुद्गल मळीने ज्ञानावरणादि पुद्गलकर्मपिंडरूपे परिणमे छे एम तो नथी;]

‘‘उभयोः

परिणामः न प्रजायेत’’ (उभयोः) जीवद्रव्य अने पुद्गलद्रव्य तेमना (परिणामः) बंने मळीने एकपर्यायरूप परिणाम (न प्रजायेत) थता नथी; ‘‘उभयोः परिणतिः न स्यात्’’ (उभयोः) जीव अने पुद्गलनी (परिणतिः) मळीने एक क्रिया (न स्यात्) थती नथी; वस्तुनुं स्वरूप आवुं ज छे; ‘‘यतः अनेकम् अनेकम् एव सदा’’ (यतः) कारण के (अनेकम्) भिन्न सत्तारूप छे जीव-पुद्गल (अनेकम् एव सदा) ते तो जीव-पुद्गल सदाय भिन्नरूप छे, एकरूप केम थई शके? भावार्थ आम छे के जीवद्रव्य-पुद्गलद्रव्य भिन्न सत्तारूप छे ते जो पहेलां भिन्न सत्तापणुं छोडी एक सत्तारूप थाय तो पछी कर्ता-कर्म-क्रियापणुं घटे. ते तो एकरूप थतां नथी तेथी जीव-पुद्गलनुं परस्पर कर्ता- कर्म-क्रियापणुं घटतुं नथी. ८५३.

(आर्या)
नैकस्य हि कर्तारौ द्वौ स्तो द्वे कर्मणी न चैकस्य
नैकस्य च क्रिये द्वे एकमनेकं यतो न स्यात् ।।९-५४।।

खंडान्वय सहित अर्थःअहीं कोई मतान्तर निरूपशे के द्रव्यनी अनन्त शक्तिओ छे, तो एक शक्ति एवी पण हशे के एक द्रव्य बे द्रव्योना परिणामने करे; जेवी रीते जीवद्रव्य पोताना अशुद्ध चेतनारूप राग-द्वेष- मोहपरिणामने व्याप्य-व्यापकपणे करे तेवी ज रीते ज्ञानावरणादि कर्मपिंडने व्याप्य- व्यापकपणे करे. उत्तर आम छे के द्रव्यने अनन्त शक्तिओ तो छे परंतु एवी शक्ति तो कोई नथी के जेनाथी, जेवी रीते पोताना गुण साथे व्याप्य-व्यापकपणे छे तेवी ज रीते परद्रव्यना गुण साथे पण व्याप्य-व्यापकपणे थाय. ‘‘हि एकस्य द्वौ कर्तारौ न’’ (हि) निश्चयथी (एकस्य) एक परिणामना (द्वौ कर्तारौ न) बे द्रव्य कर्ता नथी; [भावार्थ आम छे के अशुद्ध चेतनारूप राग-द्वेष-मोहपरिणामनुं जेवी रीते