कहानजैनशास्त्रमाळा ]
व्याप्य-व्यापकपणे जीवद्रव्य कर्ता छे तेवी ज रीते पुद्गलद्रव्य पण अशुद्ध चेतनारूप राग-द्वेष-मोहपरिणामनुं कर्ता छे एम तो नथी; जीवद्रव्य पोताना राग- द्वेष-मोहपरिणामनुं कर्ता छे, पुद्गलद्रव्य कर्ता नथी;] ‘‘एकस्य द्वे कर्मणी न स्तः’’ (एकस्य) एक द्रव्यना (द्वे कर्मणी न स्तः) बे परिणाम होता नथी; [भावार्थ आम छे के जेवी रीते जीवद्रव्य राग-द्वेष-मोहरूप अशुद्ध चेतनापरिणामनुं व्याप्य- व्यापकपणे कर्ता छे तेवी रीते ज्ञानावरणादि अचेतन कर्मनो कर्ता जीव छे एम तो नथी; पोताना परिणामनो कर्ता छे, अचेतनपरिणामरूप कर्मनो कर्ता नथी;] ‘‘च एकस्य द्वे क्रिये न’’ (च) वळी (एकस्य) एक द्रव्यनी (द्वे क्रिये न) बे क्रिया होती नथी; [भावार्थ आम छे के जीवद्रव्य जेवी रीते चेतनपरिणतिरूप परिणमे छे तेवी ज रीते अचेतनपरिणतिरूप परिणमतुं होय एम तो नथी;] ‘‘यतः एकम् अनेकं न स्यात्’’ (यतः) कारण के (एकम्) एक द्रव्य (अनेकं न स्यात्) बे द्रव्यरूप केम थाय? भावार्थ आम छे के जीवद्रव्य एक चेतनद्रव्यरूप छे ते जो पहेलां अनेक द्रव्यरूप थाय तो ज्ञानावरणादि कर्मनुं कर्ता पण थाय, पोताना राग-द्वेष-मोहरूप अशुद्ध चेतनपरिणामनुं पण कर्ता थाय; पण एम तो छे नहि. अनादिनिधन जीवद्रव्य एकरूप ज छे, तेथी पोताना अशुद्ध चेतनपरिणामनुं कर्ता छे, अचेतनकर्मनुं कर्ता नथी. आवुं वस्तुस्वरूप छे. ९ – ५४.
र्दुर्वारं ननु मोहिनामिह महाहङ्काररूपं तमः ।
तत्किं ज्ञानघनस्य बन्धनमहो भूयो भवेदात्मनः ।।१०-५५।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘ननु मोहिनाम् अहम् कुर्वे इति तमः आसंसारतः एव धावति’’ (ननु) अहो जीव! (मोहिनाम्) मिथ्याद्रष्टि जीवोनो (अहम् कुर्वे इति तमः) ‘ज्ञानावरणादि कर्मनो कर्ता जीव छे’ एवो छे जे मिथ्यात्वरूप अंधकार ते (आसंसारतः एव धावति) अनादि काळथी एक-संतानरूप चाल्यो आव्यो छे. केवो छे