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मिथ्यात्वरूपी अंधकार? ‘‘परं’’ परद्रव्यस्वरूप छे. वळी केवो छे? ‘‘उच्चकैः दुर्वारं’’ अतिशय धीठ छे. वळी केवो छे? ‘‘महाहंकाररूपं’’ (महाहंकार) ‘हुं देव, हुं मनुष्य, हुं तिर्यंच, हुं नारक’ एवी जे कर्मना पर्यायमां आत्मबुद्धि (रूपं) ते ज छे स्वरूप जेनुं एवो छे. ‘‘यदि तद् भूतार्थपरिग्रहेण एकवारं विलयं व्रजेत्’’ (यदि) जो कदी, (तत्) एवो छे जे मिथ्यात्व-अंधकार ते (भूतार्थपरिग्रहेण) शुद्धस्वरूप-अनुभव वडे (एकवारं) अन्तर्मुहूर्तमात्र (विलयं व्रजेत्) विनाशने पामे तो, [भावार्थ आम छे के जीवने यद्यपि मिथ्यात्व-अंधकार अनन्त काळथी चाल्यो आव्यो छे तथापि जो सम्यक्त्व थाय तो मिथ्यात्व छूटे, जो एक वार छूटे तो,] ‘‘अहो तत् आत्मनः भूयः बन्धनं किं भवेत्’’ (अहो) हे जीव! (तत्) ते कारणथी (आत्मनः) आत्माने अर्थात् जीवने (भूयः) फरीने (बन्धनं किं भवेत्) एकत्वबुद्धि शुं थाय? अर्थात् न थाय. केवो छे आत्मा? ‘‘ज्ञानघनस्य’’ ज्ञाननो समूह छे. भावार्थ — शुद्धस्वरूपनो अनुभव थतां संसारमां परिभ्रमण थतुं नथी. १० – ५५.
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘आत्मा आत्मभावान् करोति’’ (आत्मा) जीवद्रव्य (आत्मभावान्) पोताना शुद्धचेतनारूप अथवा अशुद्धचेतनारूप राग-द्वेष-मोहभाव, (करोति) ते-रूपे परिणमे छे. ‘‘परः परभावान् सदा करोति’’ (परः) पुद्गलद्रव्य (परभावान्) पुद्गलद्रव्यना ज्ञानावरणादिरूप पर्यायने (सदा) त्रणे काळे (करोति) करे छे. ‘‘हि आत्मनः भावाः आत्मा एव’’ (हि) निश्चयथी (आत्मनः भावाः) जीवना परिणाम (आत्मा एव) जीव ज छे. भावार्थ आम छे के चेतनापरिणामने जीव करे छे, ते चेतनपरिणाम पण जीव ज छे, द्रव्यान्तर थयुं नथी. ‘‘परस्य ते परः एव’’ (परस्य) पुद्गलद्रव्यना (ते) परिणाम (परः एव) पुद्गलद्रव्य छे, जीवद्रव्य थयुं नथी. भावार्थ आम छे के ज्ञानावरणादि कर्मनुं कर्ता पुद्गल छे अने वस्तु पण पुद्गल छे, द्रव्यान्तर नथी. ११ – ५६.