Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 61.

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समयसार-कलश
[ भगवानश्रीकुंदकुंद-

(उल्लसति) प्रगट थाय छे तेम. भावार्थ आम छे केजेम अग्निसंयोगथी पाणी ऊनुं करवामां आवे छे, कहेवामां पण ‘ऊनुं पाणी’ एम कहेवाय छे, तोपण स्वभाव विचारतां उष्णपणुं अग्निनुं छे, पाणी तो स्वभावथी शीतळ छेआवुं भेदज्ञान, विचारतां ऊपजे छे. बीजुं द्रष्टान्त ‘‘एव लवणस्वादभेदव्युदासः ज्ञानात् उल्लसति’’ (एव) जेम (लवण) खारो रस, तेना (स्वादभेद) व्यंजनथी भिन्नपणा वडे ‘खारो लवणनो स्वभाव’ एवुं जाणपणुं तेनाथी (व्युदासः) ‘व्यंजन खारुं’ एम कहेवातुंजणातुं ते छूट्युं; (आवुं) (ज्ञानात्) निज स्वरूपना जाणपणा द्वारा (उल्लसति) प्रगट थाय छे. भावार्थ आम छे के जेम लवणना संयोगथी व्यंजननो संभार करवामां आवे छे त्यां ‘खारुं व्यंजन’ एम कहेवाय छे, जणाय पण छे; स्वरूप विचारतां खारुं लवण छे, व्यंजन जेवुं छे तेवुं ज छे. १५६०.

(अनुष्टुप)
अज्ञानं ज्ञानमप्येवं कुर्वन्नात्मानमञ्जसा
स्यात्कर्तात्मात्मभावस्य परभावस्य न क्वचित् ।।१६-६१।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘एवं आत्मा आत्मभावस्य कर्ता स्यात्’’ (एवं) सर्वथा प्रकारे (आत्मा) आत्मा अर्थात् जीवद्रव्य (आत्मभावस्य कर्ता स्यात्) पोताना परिणामनो कर्ता होय छे, ‘‘परभावस्य कर्ता न क्वचित् स्यात्’’ (परभावस्य) कर्मरूप अचेतन पुद्गलद्रव्यनो (कर्ता क्वचित् न स्यात्) क्यारेय त्रणे काळे कर्ता होतो नथी. केवो छे आत्मा? ‘‘ज्ञानम् अपि आत्मानम् कुर्वन्’’ (ज्ञानम्) शुद्ध चेतनामात्र प्रगटरूप सिद्ध-अवस्था (अपि) ते-रूप पण (आत्मानम् कुर्वन्) पोते तद्रूपे परिणमे छे. वळी केवो छे? ‘‘अज्ञानम् अपि आत्मानम् कुर्वन्’’ (अज्ञानम्) अशुद्ध चेतनारूप विभावपरिणाम (अपि) ते-रूप पण (आत्मानम् कुर्वन्) पोते तद्रूपे परिणमे छे. भावार्थ आम छे के जीवद्रव्य अशुद्ध चेतनारूप परिणमे छे, शुद्ध चेतनारूप परिणमे छे, तेथी जे काळे जे चेतनारूप परिणमे छे ते काळे ते ज चेतना साथे व्याप्य-व्यापकरूप छे, तेथी ते काळे ते ज चेतनानुं कर्ता छे; तोपण पुद्गलपिंडरूप जे ज्ञानावरणादि कर्म छे तेनी साथे तो व्याप्य-व्यापकरूप नथी, तेथी तेनुं कर्ता नथी. ‘‘अञ्जसा’’ समस्तपणे आवो अर्थ छे. १६६१.