Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 62-63.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

कर्ताकर्म अधिकार
६३
(अनुष्टुप)

आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत्करोति किम्

परभावस्य कर्तात्मा मोहोऽयं व्यवहारिणाम् ।।१७-६२।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘आत्मा ज्ञानं करोति’’ (आत्मा) आत्मा अर्थात् चेतनद्रव्य (ज्ञानं) चेतनामात्र परिणाम (करोति) करे छे. केवो होवाथी? ‘‘स्वयं ज्ञानं’’ कारण के आत्मा पोते चेतनापरिणाममात्रस्वरूप छे. ‘‘ज्ञानात् अन्यत् करोति किम्’’ (ज्ञानात् अन्यत्) चेतनपरिणामथी भिन्न जे अचेतन पुद्गलपरिणामरूप कर्म तेने (किम् करोति) करे छे शुं? अर्थात् नथी करतो, सर्वथा नथी करतो. ‘‘आत्मा परभावस्य कर्ता अयं व्यवहारिणां मोहः’’ (आत्मा) चेतनद्रव्य (परभावस्य कर्ता) ज्ञानावरणादि कर्मने करे छे (अयं) एवुं जाणपणुं, एवुं कहेवुं (व्यवहारिणां मोहः) मिथ्याद्रष्टि जीवोनुं अज्ञान छे. भावार्थ आम छे केकहेवामां एम आवे छे के ज्ञानावरणादि कर्मनो कर्ता जीव छे, ते कहेवुं पण जुठुं छे. १७६२.

(वसंततिलका)
जीवः करोति यदि पुद्गलकर्म नैव
कस्तर्हि तत्कुरुत इत्यभिशङ्कयैव
एतर्हि तीव्ररयमोहनिवर्हणाय
सङ्कीर्त्यते शृणुत पुद्गलकर्मकर्तृ
।।१८-६३।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘पुद्गलकर्मकर्तृ संकीर्त्यते’’ (पुद्गलकर्म) द्रव्यपिंडरूप आठ कर्मनो (कर्तृ) कर्ता (सङ्कीर्त्यते) जेम छे तेम कहे छे; ‘‘शृणुत’’ सावधान थईने तमे सांभळो. प्रयोजन कहे छे‘एतर्हि तीव्ररयमोहनिवर्हणाय’’ (एतर्हि) आ वेळा (तीव्ररय) दुर्निवार उदय छे जेनो एवुं जे (मोह) विपरीत ज्ञान तेने (निवर्हणाय) मूळथी दूर करवा माटे. विपरीतपणुं शाथी जणाय छे? ‘‘इति अभिशङ्कया एव’’ (इति) जेवी करे छे (अभिशङ्कया) आशंका ते वडे (एव) ज. ते आशंका केवी छे? ‘‘यदि जीवः एव पुद्गलकर्म न करोति तर्हि कः तत् कुरुते’’ (यदि) जो (जीवः एव) चेतनद्रव्य (पुद्गलकर्म)