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पिंडरूप आठ कर्मने (न करोति) करतुं नथी (तर्हि) तो (कः तत् कुरुते) तेने कोण करे छे? भावार्थ आम छे के — जीवना करवाथी ज्ञानावरणादि कर्म थाय छे एवी भ्रान्ति ऊपजे छे, तेना प्रति उत्तर आम छे के पुद्गलद्रव्य परिणामी छे, स्वयं सहज ज कर्मरूप परिणमे छे. १८ – ६३.
स्वभावभूता परिणामशक्तिः ।
यमात्मनस्तस्य स एव कर्ता ।।१९-६४।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘इति खलु पुद्गलस्य परिणामशक्तिः स्थिता’’ (इति) आ रीते (खलु) निश्चयथी (पुद्गलस्य) मूर्त द्रव्यनो (परिणामशक्तिः) परिणमनस्वरूप स्वभाव (स्थिता) अनादिनिधन विद्यमान छे. केवो छे? ‘‘स्वभावभूता’’ सहजरूप छे. वळी केवो छे? ‘‘अविघ्ना’’ निर्विघ्नरूप छे. ‘‘तस्यां स्थितायां सः आत्मनः यम् भावं करोति सः तस्य कर्ता भवेत्’’ (तस्यां स्थितायां) ते परिणामशक्ति होतां (सः) पुद्गलद्रव्य (आत्मनः) पोताना अचेतनद्रव्यसंबंधी (यम् भावं करोति) जे परिणामने करे छे, (सः) पुद्गलद्रव्य (तस्य कर्ता भवेत्) ते परिणामनुं कर्ता थाय छे. भावार्थ आम छे के — ज्ञानावरणादि कर्मरूपे पुद्गलद्रव्य परिणमे छे अने ते भावनो कर्ता पुद्गलद्रव्य थाय छे. १९ – ६४.
स्वभावभूता परिणामशक्तिः ।
यं स्वस्य तस्यैव भवेत् स कर्ता ।।२०-६५।।
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘जीवस्य परिणामशक्तिः स्थिता इति’’ (जीवस्य)