कहानजैनशास्त्रमाळा ]
जीववस्तुनी अर्थात् चेतनद्रव्यनी (परिणामशक्तिः) परिणामशक्ति अर्थात् परिणमनरूप सामर्थ्य (स्थिता) अनादिथी विद्यमान छे – (इति) एवुं द्रव्यनुं सहज छे. ‘‘स्वभावभूता’’ जे शक्ति (स्वभावभूता) सहजरूप छे. वळी केवी छे? ‘‘निरन्तराया’’ प्रवाहरूप छे, एक समयमात्र खंड नथी. ‘तस्यां स्थितायां’’ ते परिणामशक्ति होतां ‘‘सः स्वस्य यं भावं करोति’’ (सः) जीववस्तु (स्वस्य) पोतासंबंधी (यं भावं) जे कोई शुद्धचेतनारूप अशुद्धचेतनारूप परिणामने (करोति) करे छे ‘‘तस्य एव सः कर्ता भवेत्’’ (तस्य) ते परिणामनी (एव) निश्चयथी (सः) जीववस्तु (कर्ता) करणशील (भवेत्) थाय छे. भावार्थ आम छे के जीवद्रव्यनी अनादिनिधन परिणमनशक्ति छे. २० – ६५.
खंडान्वय सहित अर्थः — अहीं कोई प्रश्न करे छेः ‘‘ज्ञानिनः ज्ञानमयः एव भावः कुतः भवेत् पुनः न अन्यः’’ (ज्ञानिनः) सम्यग्द्रष्टिने (ज्ञानमयः एव भावः) भेदविज्ञानस्वरूप परिणाम (कुतः भवेत्) क्या कारणथी होय छे, (न पुनः अन्यः) अज्ञानरूप नथी होतो? भावार्थ आम छे के सम्यग्द्रष्टि जीव कर्मना उदयने भोगवतां विचित्र रागादिरूप परिणमे छे त्यां ज्ञानभावनो कर्ता छे, अने (तेने) ज्ञानभाव छे, अज्ञानभाव नथी; — ते केवी रीते छे एम कोई पूछे छे. ‘‘अयम् सर्वः अज्ञानिनः अज्ञानमयः कुतः न अन्यः’’ (अयम्) परिणाम – (सर्वः) बधुंय परिणमन (अज्ञानिनः) मिथ्याद्रष्टिने (अज्ञानमयः) अशुद्ध चेतनारूप — बंधनुं कारण — होय छे. (कुतः) कोई प्रश्न करे छे — आम छे ते कई रीते छे, (न अन्यः) ज्ञानजातिनुं केम नथी होतुं? भावार्थ आम छे के मिथ्याद्रष्टिना जे कोई परिणाम होय छे ते बंधनुं कारण छे. २१ – ६६.