Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 66-67.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

कर्ताकर्म अधिकार
६५

जीववस्तुनी अर्थात् चेतनद्रव्यनी (परिणामशक्तिः) परिणामशक्ति अर्थात् परिणमनरूप सामर्थ्य (स्थिता) अनादिथी विद्यमान छे(इति) एवुं द्रव्यनुं सहज छे. ‘‘स्वभावभूता’’ जे शक्ति (स्वभावभूता) सहजरूप छे. वळी केवी छे? ‘‘निरन्तराया’’ प्रवाहरूप छे, एक समयमात्र खंड नथी. ‘तस्यां स्थितायां’’ ते परिणामशक्ति होतां ‘‘सः स्वस्य यं भावं करोति’’ (सः) जीववस्तु (स्वस्य) पोतासंबंधी (यं भावं) जे कोई शुद्धचेतनारूप अशुद्धचेतनारूप परिणामने (करोति) करे छे ‘‘तस्य एव सः कर्ता भवेत्’’ (तस्य) ते परिणामनी (एव) निश्चयथी (सः) जीववस्तु (कर्ता) करणशील (भवेत्) थाय छे. भावार्थ आम छे के जीवद्रव्यनी अनादिनिधन परिणमनशक्ति छे. २०६५.

(आर्या)
ज्ञानमय एव भावः कुतो भवेद् ज्ञानिनो न पुनरन्यः
अज्ञानमयः सर्वः कुतोऽयमज्ञानिनो नान्यः ।।२१-६६।।

खंडान्वय सहित अर्थःअहीं कोई प्रश्न करे छेः ‘‘ज्ञानिनः ज्ञानमयः एव भावः कुतः भवेत् पुनः न अन्यः’’ (ज्ञानिनः) सम्यग्द्रष्टिने (ज्ञानमयः एव भावः) भेदविज्ञानस्वरूप परिणाम (कुतः भवेत्) क्या कारणथी होय छे, (न पुनः अन्यः) अज्ञानरूप नथी होतो? भावार्थ आम छे के सम्यग्द्रष्टि जीव कर्मना उदयने भोगवतां विचित्र रागादिरूप परिणमे छे त्यां ज्ञानभावनो कर्ता छे, अने (तेने) ज्ञानभाव छे, अज्ञानभाव नथी;ते केवी रीते छे एम कोई पूछे छे. ‘‘अयम् सर्वः अज्ञानिनः अज्ञानमयः कुतः न अन्यः’’ (अयम्) परिणाम(सर्वः) बधुंय परिणमन (अज्ञानिनः) मिथ्याद्रष्टिने (अज्ञानमयः) अशुद्ध चेतनारूपबंधनुं कारणहोय छे. (कुतः) कोई प्रश्न करे छेआम छे ते कई रीते छे, (न अन्यः) ज्ञानजातिनुं केम नथी होतुं? भावार्थ आम छे के मिथ्याद्रष्टिना जे कोई परिणाम होय छे ते बंधनुं कारण छे. २१६६.

(अनुष्टुप)
ज्ञानिनो ज्ञाननिर्वृत्ताः सर्वे भावा भवन्ति हि
सर्वेऽप्यज्ञाननिर्वृत्ता भवन्त्यज्ञानिनस्तु ते ।।२२-६७।।