६६
खंडान्वय सहित अर्थः — ‘‘हि ज्ञानिनः सर्वे भावाः ज्ञाननिर्वृत्ताः भवन्ति’’ (हि) निश्चयथी (ज्ञानिनः) सम्यग्द्रष्टिने (सर्वे भावाः) जेटला परिणाम छे ते बधा (ज्ञाननिर्वृत्ताः भवन्ति) ज्ञानस्वरूप होय छे. भावार्थ आम छे के सम्यग्द्रष्टिनुं द्रव्य शुद्धत्वरूप परिणम्युं छे तेथी सम्यग्द्रष्टिनो जे कोई परिणाम होय छे ते ज्ञानमय शुद्धत्वजातिरूप होय छे, कर्मनो अबंधक होय छे. ‘‘तु ते सर्वे अपि अज्ञानिनः अज्ञाननिर्वृत्ताः भवन्ति’’ (तु) आम पण छे के (ते) जेटला परिणाम (सर्वे अपि) शुभोपयोगरूप अथवा अशुभोपयोगरूप छे ते बधा (अज्ञानिनः) मिथ्याद्रष्टिने (अज्ञाननिर्वृत्ताः) अशुद्धत्वथी नीपज्या छे, (भवन्ति) विद्यमान छे. भावार्थ आम छे के – सम्यग्द्रष्टि जीवनी अने मिथ्याद्रष्टि जीवनी क्रिया तो एकसरखी छे, क्रियासंबंधी विषय-कषाय पण एकसरखा छे, परन्तु द्रव्यनो परिणमनभेद छे. विवरण – सम्यग्द्रष्टिनुं द्रव्य शुद्धत्वरूप परिणम्युं छे तेथी जे कोई परिणाम बुद्धिपूर्वक अनुभवरूप छे अथवा विचाररूप छे अथवा व्रतक्रियारूप छे अथवा भोगाभिलाषरूप छे अथवा चारित्रमोहना उदये क्रोध, मान, माया, लोभरूप छे ते सघळाय परिणाम ज्ञानजातिमां घटे छे, केम के जे कोई परिणाम छे ते संवर- निर्जरानुं कारण छे; — एवो ज कोई द्रव्यपरिणमननो विशेष छे. मिथ्याद्रष्टिनुं द्रव्य अशुद्धरूप परिणम्युं छे, तेथी जे कोई मिथ्याद्रष्टिना परिणाम ते अनुभवरूप तो होता ज नथी; तेथी सूत्र-सिद्धान्तना पाठरूप छे अथवा व्रत-तपश्चरणरूप छे अथवा दान, पूजा, दया, शीलरूप छे अथवा भोगाभिलाषरूप छे अथवा क्रोध, मान, माया, लोभरूप छे, – आवा सघळा परिणाम अज्ञानजातिना छे, केम के बंधनुं कारण छे, संवर-निर्जरानुं कारण नथी; — द्रव्यनो एवो ज परिणमनविशेष छे. २२-६७.
खंडान्वय सहित अर्थः — एम कह्युं छे के सम्यग्द्रष्टि जीवनी अने मिथ्याद्रष्टि जीवनी बाह्य क्रिया तो एकसरखी छे परंतु द्रव्यनो परिणमनविशेष छे, ते विशेषना अनुसार दर्शावे छे, सर्वथा तो प्रत्यक्ष ज्ञानगोचर छे. ‘‘अज्ञानी