शासननायक सर्वज्ञवीतरागदेव परम भट्टारक परम पूज्य १००८ भगवान श्री महावीरस्वामीनी भव्यजनकल्याणकारी दिव्य देशनानो जे अध्यात्मप्रवाह विक्रम संवतना प्रथम सैकामां आ भारतवर्षने पावन करनार आचार्य भगवान श्री कुंदकुंद महामुनिवरने गुरुपरंपराथी प्राप्त थयेलो, ते तेमणे युक्ति, आगम अने पोताना निर्विकल्प रसास्वादरूप स्वानुभवना बळ वडे श्री समयसार, प्रवचनसार, नियमसार अने पंचास्तिकायसंग्रह वगेरे अनेक प्राभृतरूप प्राकृतगाथाबद्ध परमागमोमां भरीने मुमुक्षु भव्य जीवोना कल्याण-अर्थे तेमने भेटरूपे अर्पण कर्यो छे. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवप्रणीत, उपरोक्त परमागमोमां श्री समयसार परमागम आ काळे निरभ्र नभमंडळमां तेजस्वी सूर्य समान अध्यात्मतत्त्वनो सर्वांग प्रकाशनार महान अद्भुत सर्वोत्कृष्ट ग्रंथ छे. तेना प्रणेता, जेवा उच्च कोटिना आत्मा छे तेवो ज उत्तम आ ग्रंथ छे.
समयसार ग्रंथ उपर, श्री कुंदकुंदाचार्यदेव पछी लगभग एक हजार वर्षे पोतानां दिव्य ज्ञान-संयमथी तथा अनुपम विद्वत्ताथी भारतनी भव्य धराने विभूषित करनार श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे ‘आत्मख्याति’ नामनी विशद, अर्थगंभीर, मूळ गाथाओना हार्दने खोलनारी तथा अध्यात्मरसथी ओतप्रोत सुंदर टीका संस्कृत भाषामां रचेली छे. जेम समयसार परमागमना मूळ कर्ता भगवान कुंदकुंदाचार्यदेव सातिशय अध्यात्मप्रतिभासंपन्न, लोकोत्तर, महान आचार्यपरमेष्ठी छे, तेम ‘आत्मख्याति’ टीकाना प्रणेता पण अध्यात्ममस्तीमां मस्त महा समर्थ आचार्य छे. तेमणे प्रवचनसार तथा पंचास्तिकायसंग्रह उपर पण टीका लखी छे, अने तत्त्वार्थसार, पुरुषार्थसिद्ध्युपाय आदि स्वतंत्र ग्रंथो पण लख्या छे. ते सर्वमां ‘आत्मख्याति’ टीका आचार्यदेवनी सर्वोत्कृष्ट कृति छे.
आ टीकामां आचार्यदेवे, मूळ गाथाओमां भरेला अध्यात्मतत्त्वना गूढतम आशयोने खोलीने, जीवादि नव तत्त्वोनुं शुद्धनयनी प्रधानताथी निरूपण करी मोक्षमार्गनुं यथार्थ स्वरूप जेम छे तेम बताव्युं छे, अने अनादि काळथी भवभ्रमणने लीधे दुःखी थता जीवोने दुःखथी मुक्त थवा माटे एक मात्र समजवुं बाकी रही गयुं छे एवा एकत्व-विभक्त आत्माना