कहानजैनशास्त्रमाळा ]
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।३५-८०।।
अर्थः — जीव भाव छे (अर्थात् भावरूप छे) एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव भाव नथी (अर्थात् अभावरूप छे) एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. ३५ – ८०.
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।३६-८१।।
अर्थः – जीव एक छे एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव एक नथी (-अनेक छे) एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. ३६ – ८१.
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।३७-८२।।
अर्थः – जीव सान्त (-अन्त सहित) छे एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव सान्त नथी एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. ३७ – ८२.