कहानजैनशास्त्रमाळा ]
कर्ताकर्म अधिकार
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तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. ४० – ८५.
(उपजाति)
एकस्य चेत्यो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।४१-८६।।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।४१-८६।।
अर्थः — जीव चेत्य (चेतावायोग्य) छे एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव चेत्य नथी एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. ४१ – ८६.
(उपजाति)
एकस्य द्रश्यो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।४२-८७।।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।४२-८७।।
अर्थः — जीव द्रश्य (-देखावायोग्य) छे एवो एक नयनो पक्ष छे अने जीव द्रश्य नथी एवो बीजा नयनो पक्ष छे; आम चित्स्वरूप जीव विषे बे नयोना बे पक्षपात छे. जे तत्त्ववेदी पक्षपातरहित छे तेने निरन्तर चित्स्वरूप जीव चित्स्वरूप ज छे. ४२ – ८७.
(उपजाति)
एकस्य वेद्यो न तथा परस्य
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
चिति द्वयोर्द्वाविति पक्षपातौ ।
यस्तत्त्ववेदी च्युतपक्षपात-
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।४३-८८।।
स्तस्यास्ति नित्यं खलु चिच्चिदेव ।।४३-८८।।