Samaysar Kalash Tika-Gujarati (Devanagari transliteration). Shlok: 91.

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कहानजैनशास्त्रमाळा ]

कर्ताकर्म अधिकार
७७

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘एवं (सः तत्त्ववेदी) एकम् स्वं भावम् उपयाति’’ (एवं) पूर्वोक्त प्रकारे (सः) सम्यग्द्रष्टि जीव(तत्त्ववेदी) शुद्धस्वरूपनो अनुभवशील(एकम् स्वं भावम् उपयाति) एक शुद्धस्वरूप चिद्रूप आत्माने आस्वादे छे. केवो छे आत्मा? ‘‘अन्तः बहिः समरसैकरसस्वभावं’’ (अन्तः) अंदर अने (बहिः) बहार (समरस) तुल्यरूप एवी (एकरस) चेतनशक्ति ते छे (स्वभावं) सहज रूप जेनुं एवो छे. शुं करीने शुद्धस्वरूप पामे छे? ‘‘नयपक्षकक्षाम् व्यतीत्य’’ (नय) द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक भेद, तेनो (पक्ष) अंगीकार, तेनो (कक्षाम्) समूह छेअनन्त नयविकल्पो छे, तेमने (व्यतीत्य) दूरथी ज छोडीने. भावार्थ आम छे केअनुभव निर्विकल्प छे, ते अनुभवकाळे समस्त विकल्पो छूटी जाय छे. (नयपक्षकक्षा) केवी छे? ‘‘महतीं’’ जेटला बाह्य-अभ्यन्तर बुद्धिना विकल्पो तेटला ज नयभेद, एवी छे. वळी केवी छे? ‘‘स्वेच्छासमुच्छलदनल्पविकल्पजालाम्’’ (स्वेच्छा) विना उपजाव्ये ज (समुच्छलत्) ऊपजे छे एवी जे (अनल्प) अति घणी (विकल्प) निर्भेद वस्तुमां भेदकल्पना, तेनो (जालाम्) समूह छे जेमां एवी छे. केवुं छे आत्मस्वरूप? ‘‘अनुभूतिमात्रम्’’ अतीन्द्रिय सुखस्वरूप छे. ४५९०.

(रथोद्धता)
इन्द्रजालमिदमेवमुच्छलत्
पुष्क लोच्चलविकल्पवीचिभिः
यस्य विस्फु रणमेव तत्क्षणं
कृत्स्नमस्यति तदस्मि चिन्महः
।।४६-९१।।

खंडान्वय सहित अर्थः‘‘तत् चिन्महः अस्मि’’ हुं एवा ज्ञानपुंजरूप छुं के ‘‘यस्य विस्फु रणम्’’ जेनो प्रकाशमात्र थतां ‘‘इदम् कृत्स्नम् इन्द्रजालम् तत्क्षणं एव अस्यति’’ (इदम्) विद्यमान अनेक नयविकल्प (कृत्स्नम्) के जे अति घणा छे, (इन्द्रजालम्) इन्द्रजाळ छे अर्थात् जूठा छे, परंतु विद्यमान छे ते (तत्क्षणं) जे काळे शुद्ध चिद्रूप अनुभव थाय छे ते ज काळे (एव) निश्चयथी (अस्यति) विनष्ट थई जाय छे. भावार्थ आम छेजेम सूर्यनो प्रकाश थतां अंधकार फाटी जाय छे तेम शुद्ध चैतन्यमात्रनो अनुभव थतां जेटला विकल्पो ते बधाय मटे छेएवी शुद्ध चैतन्यवस्तु छे ते मारो स्वभाव; अन्य समस्त कर्मनी उपाधि छे. केवी छे इन्द्रजाळ? ‘‘पुष्कलोच्चल-