सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ८९
वळी, जो ज्ञेयपदार्थ छे तो तेनो ज्ञाता पण कोई छे ज.
कारण के – ज्ञेय जे मेरू आदिक वा जीवआदि शास्त्रमां सांभळी
वगरदेखे ज कोईनां कहेलां वचनोना आश्रयथी श्रुतज्ञान वडे
जाणीए छीए. जेम सूक्ष्मआदि पदार्थ पोताने प्रत्यक्ष जाणवामां
न आवे तोपण कोईना द्वारा कहेलां शास्त्रोथी निर्बाध श्रुतज्ञान
वडे जाणवामां आवे छे, माटे अनुमानथी आ निश्चय सिद्ध कर्यो
के जीव आदि वस्तु छे तो तेनो संपूर्ण स्पष्ट ज्ञाता पण कोई
छे ज, ए प्रमाणे त्रीजीजातिना अनुमानथी सिद्ध कर्युं.
वळी, सूक्ष्मआदि पदार्थोने जे उपदेश छे ते सूक्ष्मआदि
पदार्थोने कोई साक्षात् जाणवावाळो छे तेना आश्रयथी ज
(उपदेश) प्रवर्त्यो छे, कारण के – १सुनिश्चितासंभवद्बाधक
प्रमाणोने माटे उपदेश विद्यमान छे, त्यां अमे आ अनुमान
सिद्ध करीए छीए के – जो आ उपदेश छे तो तेना मूळ वक्ता
सर्वज्ञवीतराग ज छे, ए प्रमाणे परस्वरूप कार्यानुमानथी
सर्वज्ञनी सत्ता सिद्ध करी. श्रीश्लोकवार्तिकमां कह्युं छे के –
✽
सूक्ष्माद्यर्थोपदेश हि तत्साक्षात्कर्तृपूर्वकः ।
परोपदेशलिंगाक्षानपेक्षावितथत्वतः ।।९।।
(प्र. अ. पानुं – ११)
१. सुनिश्चितासंभवद्बाधकप्रमाण = जेमां कोई बाधक प्रमाण न
होय एवी रीते बराबर नक्की थयेलुं. (कोईपण वस्तुनी सत्ता
सिद्ध करवाने माटे बधाथी चढिआतुं प्रमाण ए छे, के तेनी
सत्तामां कोई बाधक प्रमाण न मळे.)