सत्तास्वरूप ][ १
ॐ
श्री सर्वज्ञाय नमः
सत्तास्वरुप
मंगलमय मंगलकरण, वीतरागविज्ञान;
नमो तेह जेथी थया, १अरहंतादिमहान.
आ आत्माने सुख प्रिय छे अने ते सुख सर्व
कर्मोना नाशथी प्राप्त थाय छे, पण (खोटा) जोरथी प्रगट
थतुं नथी; कर्मोनो नाश चारित्रथी थाय छे अने चारित्र छे
ते प्रथम २अतिचाररहित ३सम्यक्त्व थतां तथा चारे
१. अर्हंत = जेमने अंतरंगमां पूर्णज्ञान (केवळज्ञान) तथा पूर्ण
वीतरागता प्रगटी छे तथा बाह्यमां जीवादि पदार्थोनुं साचुं मूळ
वक्तापणुं छे पण आयुष्यना कारणे जेओ मनुष्यशरीर सहित
छे एवा जीवन मुक्त पुरुषो; तीर्थंकर भगवान.
२. अतिचार = दोष; प्रगटेलां गुणोमां पुरुषार्थनी नबळाईथी
लागता दोषो.
३. सम्यक्त्व = साची श्रद्धा; हुं शुद्ध छुं, निर्मळ छुं – एवा अखंड
विषयनी यथार्थ प्रतीति तेने निश्चय सम्यक्त्व कहे छे.