जीवोने शास्त्राभ्यास थवानो अवसर पामवो अत्यंत दुर्लभ
छे, कारण के
होय छे. वळी बे इंद्रियादिथी
शास्त्राभ्यास थवानो संभव ज नथी, कोई जीवने पूर्ववासना
होय तो अंतरंगमां कदाचित् थाय; देवगतिमां जे नीचजातिना
देवो छे ते तो जे विषयसामग्री मळी छे तेमां ज अत्यंत
आसक्त छे, तेमने तो धर्मवासना ज उत्पन्न थती नथी,
तथा उच्चपदवाळा कोई देवो छे, तेमने धर्मवासना उत्पन्न
थाय छे; ते विशेषपणे मनुष्यादिपर्यायोमां धर्मसाधनानी
योग्यताथी ज एवां पद पामे छे. मनुष्यपर्यायमां घणा जीवो
तो
वा बाल्यावस्थामां ज मरण थई जाय छे तथा मोटुं आयुष्य
२. लब्धपर्याप्तक = जे जीवनी एक पण पर्याप्ति पूर्ण थई न होय