Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ ३
छे. त्यां आ संसारवनमां भ्रमण अनादिकाळथी छे तेथी
जीवोने शास्त्राभ्यास थवानो अवसर पामवो अत्यंत दुर्लभ
छे, कारण के
संसारमां घणो काळ तो एकेन्द्रियपर्यायमां पूर्ण
थाय छे. त्यां तो मात्र एक स्पर्शन इंद्रियनुं ज किंचित् ज्ञान
होय छे. वळी बे इंद्रियादिथी
असंज्ञी पंचेन्द्रिय सुधी तो
तेमने विचार करवानी शक्ति ज नथी, नरकगतिमां
शास्त्राभ्यास थवानो संभव ज नथी, कोई जीवने पूर्ववासना
होय तो अंतरंगमां कदाचित् थाय; देवगतिमां जे नीचजातिना
देवो छे ते तो जे विषयसामग्री मळी छे तेमां ज अत्यंत
आसक्त छे, तेमने तो धर्मवासना ज उत्पन्न थती नथी,
तथा उच्चपदवाळा कोई देवो छे, तेमने धर्मवासना उत्पन्न
थाय छे; ते विशेषपणे मनुष्यादिपर्यायोमां धर्मसाधनानी
योग्यताथी ज एवां पद पामे छे. मनुष्यपर्यायमां घणा जीवो
तो
लब्ध्यपर्याप्तक छे तेमनुं तो आयुष्य ज एक श्वासना
अढारमा भागमात्र छे, ते जीवो तो पर्याप्तिनी पूर्णता ज
करता नथी. वळी कदाचित् अल्पआयु पामे तो गर्भमां ज
वा बाल्यावस्थामां ज मरण थई जाय छे तथा मोटुं आयुष्य
१. असंज्ञी = मन वगरना प्राणी.
२. लब्धपर्याप्तक = जे जीवनी एक पण पर्याप्ति पूर्ण थई न होय
तथा न थवावाळी होय, तेने लब्धपर्याप्तक कहे छे.
३. पर्याप्ति = इंद्रियादिरूप शक्तिनी पूर्णतामात्रने पर्याप्ति कहे छे
(पर्याप्ति = पूर्णता).