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[ सत्तास्वरूप
पामे तो शूद्र आदि हलका कुळोमां उपजवुं थाय छे. तथा
जो उच्चकुळ पामे तो इंद्रियोनी परिपूर्णता वा शरीरनी
निरोगता पामवी दुर्लभ छे, वळी एनाथी भला गामादिमां
(उत्तम देशादिमां) उपजवुं दुर्लभ छे अने त्यां पण
धर्मवासना थवी महा दुर्लभ छे, तथा साचा देव – शास्त्र
–
गुरुनो संबंध मळवो एथी पण महा दुर्लभ छे. त्यां पण
पूजा, दान, शील, संयमादि व्यवहारधर्मनी वासना तो
कदाचित् उपजी पण जाय, परंतु जेनाथी अनादि
१मिथ्यात्वरोग मटे एवा निमित्तोनुं मळवुं तो उत्तरोत्तर महा
दुर्लभ जाणी आ (हलका) निष्कृष्टकाळमां जैनधर्मनुं यथार्थ
श्रद्धानादि थवुं तो कठण छे ज, परंतु तत्त्वनिर्णयरूप धर्म तो
बाळ, वृद्ध, रोगी, निरोगी, धनवान, निर्धन, सुक्षेत्री तथा
कुक्षेत्री इत्यादि सर्व अवस्थामां प्राप्त थवा योग्य छे, तेथी
जे पुरुषो पोताना हितनो २वांछक छे तेणे तो सर्वथी
पहेलां आ तत्त्वनिर्णयरूप कार्य ज करवुं योग्य छे. कह्युं छे
के —
न क्लेशो न धनव्ययो न गमनं देशान्तरे प्रार्थना ।
केषांचिन्न बलक्षयो न तु भयं पीडा न कस्माच्च न ।।
१. मिथ्यात्व = खोटो अभिप्राय, खोटी श्रद्धा, वस्तुना स्वरूपनी
अयथार्थ श्रद्धा.
२. वांछक = इच्छनार, अभिलाषी.