Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ ७
माटे आगमनुं सेवन, मुक्तिनुं अवलंबन, परंपरा गुरुओनो
उपदेश अने स्वानुभव द्वारा तत्त्वनिर्णय करवो योग्य छे.
जिनवचन छे ते चारे अनुयोगमय छे ए रहस्य जाणवा
योग्य छे, त्यां जिनवचन तो अपार छे, तेनो पार तो
श्रीगणधरदेव पण पाम्या नहि माटे एमां जे मोक्षमार्गनी
प्रयोजनभूत रकम छे; ते तो निर्णयपूर्वक अवश्य जाणवा योग्य
छे. कह्युं छे के
अन्तो णत्थि सुईणं कालो थोओवयं च दुम्मेहा
तं णावर सिक्खियव्वं जिं जरमरणक्खयं कुणहि ।।९८।।
(पाहुडदोहा)
त्यां मोक्षमार्गमां प्रयोजनभूत रकम कई कई छे ते अहीं
दर्शावीए छीए. जिनधर्मजिनमत, देवकुदेव, गुरुकुगुरु,
शास्त्रकुशास्त्र, धर्मकुधर्मअधर्म, हेयउपादेय, तत्त्व
अतत्त्वकुतत्त्व, मार्गकुमार्गअमार्ग, संगतिकुसंगति,
संसारमोक्ष, जीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध
* अर्थ :श्रुतिओनो अंत नथी, काळ थोडो छे अने अमे दुर्बुद्धि
(अल्पबुद्धिवाळा) छीए, तेथी (हे जीव!) तारे ते शीखवा योग्य
छे, के जेनाथी तुं जन्म-मरणनो नाश करी शके.
१. हेय = छोडवा योग्य.
२. उपादेय = आदरवा योग्य.