सत्तास्वरूप ][ ९
+व्यंजनपर्याय, असमान जातिविभावद्रव्यव्यंजनपर्याय१,
२स्वभावव्यंजनपर्याय, ३स्वभावअर्थपर्याय, ४शुद्धअर्थपर्याय,
५अशुद्धअर्थपर्याय, ६सामान्यगुण अने ७विशेषगुण. ए प्रमाणे
सत्तानो निश्चय करी हवे तेनुं स्वरूप कहीए छीए —
+व्यंजनपर्याय = प्रदेशत्व गुणना परिणमनने व्यंजनपर्याय कहे
छे. तेने द्रव्यपर्याय पण कहे छे.
१. विभावद्रव्यव्यंजनपर्याय = परोपाधि निमित्तथी थता प्रदेशत्व
गुणना फेरफारने विभावव्यंजनपर्याय कहे छे. जेम के जीवनी
नर-नारकादि पर्याय अने पुद्गलनी द्वि – अणुकादि पर्याय. आ
विभावद्रव्यव्यंजनपर्याय जीव अने पुद्गलमां ज होय छे.
२. स्वभावव्यंजनपर्याय = परोपाधि वगर प्रदेशत्व गुणमां जे
फेरफार थाय छे तेने स्वभावव्यंजनपर्याय कहे छे; जेम के जीवनी
सिद्ध पर्याय.
३. स्वभावअर्थपर्याय = अगुरुलघुगुणना परिणमनने स्वभाव-
पर्याय कहे छे. तेने स्वभावअर्थपर्याय पण कही शकाय छे.
४ – ५. शुद्धअर्थपर्याय, अशुद्धअर्थपर्याय = परोपाधिनी अपेक्षा रहित
प्रदेशत्वगुण सिवायना अन्य गुणोना फेरफारने १शुद्धअर्थपर्याय
अने परोपाधिनी अपेक्षा सहितना परिणमनने २अशुद्धअर्थ-
पर्याय कहे छे. जेम के १जीवनुं केवळज्ञान; २जीवना रागद्वेष.
६. सामान्यगुण = जे गुण बधां द्रव्यमां साधारणरूपथी मळी आवे
तेने सामान्यगुण कहे छे. दा.त. अस्तित्व.
७. विशेषगुण = जे गुण बधा द्रव्योमां न मळी आवे तेने विशेष
गुण कहे छे. दा.त. जीव द्रव्यमां ज्ञान, पुद्गल द्रव्यमां वर्ण,
गंध, रस, स्पर्श.