Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१४ ]
[ सत्तास्वरूप
वेळा विशेष आकुलता थाय छे तथा कोई वेळा ओछी
आकुलता थाय छे, परंतु ए इच्छा नामनो रोग हंमेशां बनी
ज रह्यो छे, ज्यारे कोई
भव्यजीवने मिथ्यात्वादिना
क्षयोपशमथी तथा भलुं थवुं सर्जित होवाथी काळलब्धि नजीक
आवे छे त्यारे ‘पोताना करेला विषयसेवनरूप उपायोथी सिद्धि
न थई’ एम जाणी तेने असत्य जाणे त्यारे सत्य उपायनो
निश्चय करी मारो इच्छा नामनो रोग जे प्रकारथी मटे ए
प्रमाणे सत्यधर्मनुं
साधन करवुं. त्यां सत्य धर्मनुं साधन तो
इच्छारोग मटवानो उपाय छे, पण ते तो जे पहेलां पोते
इच्छारोगसहित हतो अने पाछळथी सत्यधर्मनुं साधन करी
जेने ए इच्छारोगनो सर्वथा अभाव थयो होय तेनाथी
दर्शाव्यो जाणी शकाय छे, कारण के
राग, धर्म, साचीप्रवृत्ति,
सम्यग्ज्ञान वा वीतरागदशारूप निरोगता तेनुं आदिथी अंत
सुधीनुं साचुं स्वरूप स्वाश्रितपणे तेने ज भासे छे, अने ते ज
अन्यने दर्शाववावाळा छे, माटे जेने अज्ञानजनित इच्छा
नामना रोगथी भय उत्पन्न थयो होय, साचो रोग भास्यो
१. भव्यजीव = मोक्ष पामवाने लायकातवाळो जीव.
२. काळलब्धि = स्वकाळ (पोतानी पर्याय)नी प्राप्ति, पोताना
पुरुषार्थने फोरववारूप अवस्था.
३. साधन करवुं = सेववुं, आदरवुं.
४. सम्यग्ज्ञान = साचुं ज्ञान, वस्तुना स्वरूपने यथार्थ रीते जाणवुं
ते; परथी भिन्न आत्मानुं साचुं भान.