Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ १५
होय, ए रोगने मटवानी साची धर्मवार्ता श्री सर्वज्ञवीतराग
भगवाने बतावेली आवशे (एवो निश्चय थयो होय). वा जेनो
ए इच्छारोग मट्यो छे, तेनी मूर्ति देखवाथी उत्साह उत्पन्न
थयो होय, ते ज जीव रोगीनी माफक वा याचकनी माफक
शांतरसनी रसिकताथी भगवानरूप वैद्यनो आश्रय ले. ए
प्रमाणे शांतरसनी मूर्तिनां दर्शनना प्रयोजन अर्थे काय
वचन
मननेत्र आदि सर्व अंगथी यथावत् हावभावकटाक्ष
विलासविभ्रम थई जाय, तेम चार प्रकाररूप पोताना
परिणामने बनावी जिनमंदिरमां आवे, त्यां प्रथम तो आगळ
अन्य सेवक बेठा होय तेमने सुदेवनुं स्वरूप पूछे वा
अनुमानादिथी निर्णय करे तथा आम्नायने माटे दर्शनादि करतो
जाय, पण पोते त्यारे सेवक बने छे वा तेमनो उपदेशेलो मार्ग
त्यारे ग्रहण करे छे वा तेमनां कहेलां तत्त्वोनुं त्यारे श्रद्धान करे
छे, के ज्यारे पहेलां आगम सांभळी वा अनुमानादिथी
स्वरूपनो निश्चय साचो थई चुक्यो होय. पण जेने साचो
स्वरूपनो निर्णय थयो ज नथी तथा विशेष साधननुं यथार्थ
ज्ञान थयुं ज नथी, त्यारे ते निर्णय विना कोनो सेवक बनी
दर्शन करे छे वा जाप करे छे? कोई कहे ‘अमे तो साचादेव
जाणी कुळना आश्रयथी वा पंचायतना आश्रयथी पूजा
१. हावभाव = शरीर ने मननी चेष्टा.
२. कटाक्ष = प्रेमथी भरेली वक्र द्रष्टि, प्रेमथी भरेला वक्र वचनो.
३. पंचायत
जनसमूह, आगळ पडतां माणसो, ज्ञाति, संघ.