Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 17 of 103
PDF/HTML Page 29 of 115

 

background image
सत्तास्वरूप ][ १७
छे, एटलो नफो तो थयो! तेने कहीए छीए के
तमने गृहितमिथ्यात्वनुं ज ज्ञान नथी के
गृहितमिथ्यात्व कोने कहेवाय? तमे तो गृहितमिथ्यात्व आम
मान्युं छे के
‘अन्य मिथ्यादेवादिनुं सेवन करवुं, पण ए
गृहितमिथ्यात्वनुं (साचुं) स्वरूप भास्युं नथी. तेनुं खरूं
स्वरूप शुं छे ते अहीं कहीए छीए
जे देवगुरुशास्त्रधर्म इत्यादिकनो बाह्यलक्षणोना
आश्रये सत्ता, स्वरूप, स्थान, फळ प्रमाण, नय
इत्यादिकनो निश्चय तो न होय अने लौकिकताथी तेनुं
बाह्यरूप जुदुं न माने, तेने बाह्यरूपथी पण (तेनुं) स्वरूप
भास्युं नथी, ते अन्यने सेवे छे तथा कुळ
पक्षना आश्रये,
पंचायतना आश्रये, संगतिना आश्रये, प्रभावनादि चमत्कार
जोई वा शास्त्रमां अने प्रगटमां देवादिकनी पूजादिकथी भलुं
थवुं कह्युं छे, एवी मान्यताना आश्रये साचा देवादिकनो ज
(मात्र) पक्षपातीपणाथी सेवक बनी प्रवर्त्ते छे तेने पण
गृहितमिथ्यात्व ज छे. ए प्रमाणे तो अन्य पण पोताना
ज देवने माने छे अने जिनदेवने नथी मानता. ए
गृहितमिथ्यात्वनुं मटवुं तो आ प्रमाणे छे के
अन्य
देवादिना बाह्यगुणोनुं तथा प्रबंधना आश्रयपूर्वक स्वरूप
१. प्रमाण = साचुं ज्ञान, आखी वस्तुने यथार्थपणे जाणवी ते.
२. नय = वस्तुना एक पडखाने पेटमां राखी बीजा पडखाने मुख्य
करी जाणवुं ते. श्रुतज्ञाननो अंश.