सत्तास्वरूप ][ १९
१पचीसमलने विचारपूर्वक नहि लगावतो तन, धन, वचन,
ज्ञान, श्रद्धान अने कषाय वगेरे तेमां लगाववाने
सद्भावरूप ज प्रवर्ते छे, अन्यमां प्रवर्ततो नथी, अभावने
साधे पण मिथ्यासद्भावने स्थान न आपे वा तेनुं समर्थन
न करे वा तेना सहकारीकारणरूप न बने.
त्यां देवना कथनमां तो – देवसंबंधी मिथ्यासद्भाव
करतो नथी. अन्यदेव अने जिनदेवमां समानतारूप प्रवृत्ति
राखतो नथी, जिनदेवनुं (अंतरंग) स्वरूप अने बाह्यरूप
अन्यथा कहेतो नथी – सांभळतो नथी, वीतरागदेवनी
प्रतिमानुं रूप सरागरूप करतो नथी, अविनयादिरूप प्रवृत्ति
करतो नथी, ते रूप पोते बनावतो नथी, लौकिकमां
१. सम्यक्त्वना पच्चीसमल; आठमद = (१) जाति, (२) लाभ,
(३) कुळ, (४) रूप, (५) तप, (६) बळ, (७) विद्या,
(८) अधिकार.
त्रण मूढता = (१) कुगुरू सेवा, (२) कुदेव सेवा, (३) कुधर्म
सेवा.
आठ शंकादि दोषो = (१) शंका, (२) कांक्षा, (३) विचिकित्सा,
(४) मूढ द्रष्टि, (५) अनूपगूहन, (६) अस्थितिकरण,
(७) अवात्सल्य, (८) अप्रभावना. ए आठ शंकादि दोषो.
छ अनायतन = (१) कुगुरु, (२) कुदेव, (३) कुधर्म,
(४) कुगुरु सेवक, (५) कुदेव सेवक, (६) कुधर्म सेवक. आ बधा
मळीने सम्यक्त्वना पच्चीस दोष छे.