हता वा वर्तमानमां बीजा तमारी बराबरीना गृहस्थ अन्य
देवादिकना माटे जे करे छे, तेमना जेवुं माया मिथ्यात्व
करशो तो ज गृहितमिथ्यात्व छूटशे, तेना हिस्सा जेटलां तन,
मन, धन, वचन, ज्ञान, श्रद्धान, कषाय, क्षेत्र अने कालादिक
अहीं लगावशो तो ज तमे बाह्य जैनी बनशो, तमे बाह्यरूप
साची आस्तिक्यता लावता नथी, ज्ञान करता नथी, क्रिया
सुधारता नथी, धन लगावता नथी, उल्लासपूर्वक कार्य करता नथी
अने आळसादि कर्म पण छोडता नथी अने मात्र कोरी वातोथी
पांच आळसु अज्ञानी भाईओनो संबंध राखवा जैनी बन्या छो
तो बनो पण फळ तो शास्त्रमर्यादानुसार प्रवर्ततां ज साचुं
लागशे. आ अवसर चाल्यो जशे त्यारे तमे ज पाछो पश्चात्ताप
करशो अने कहेशो के
अथवा कपट वडे लोकने देखाडवाना सेवक थया छो, वा तेनुं
महानपणुं तमने भास्युं नथी, वा तमने तेमां कांई पण फळनी
प्राप्ति थवी भासी नथी वा तमारा हृदयमां तेनुं वास्तविक रहस्य
ज उपज्युं नथी. के जेथी तमे स्वयं उत्साहरूप बनी ए कार्योमां
सुखरूप यथायोग्य प्रवर्ती शकता नथी.