(धर्म) कार्यो फीकां भास्यां होय एम लागे छे, तेनुं कारण शुं
छे? अहीं तमे कहेशो के ‘रुचि उपजती नथी
उपरथी एम जणाय छे के
वासना उपजती नथी अने मात्र मोटा कहेवराववा माटे वा दश
पुरुषोमां संबंध राखवा माटे कपट करी अयथार्थ प्रवर्तो छो,
तेनाथी लौकिक अज्ञानी जीवो तो तमने भला कही देशे; परंतु
जेना तमे सेवक बनो छो ते तो
कर्म बंधाया विना रहेशे नहि अने तमारुं बूरुं करवावाळुं तो
कर्म ज छे माटे तमने आ प्रमाणे प्रवर्तवामां नफो शो थयो?
तथा जो तमे एनाथी (ए जिनदेवादिथी) विनयादिरूप,
नम्रतारूप वा रसस्वरूप नथी प्रवर्तता तो तमने तेनुं महानपणुं
वा स्वामिपणुं भास्युं ज नथी, त्यां तो तमारामां अज्ञान
आव्युं! तो पछी वगर जाण्ये सेवक शुं थया? तमे कहेशो के
‘ए अमे जाणीए छीए, तो ए जिनदेवादिकना अर्थे
उच्चकार्योमां मिथ्यात्वना जेवी उमंगरूप प्रवृत्ति तो न थई!