सत्तास्वरूप ][ २५
द्यो; त्यां प्रत्यक्षमां तो पोताना नेत्र वडे ए बतावो के अन्य देवने
पूजवाथी इष्टनी प्राप्ति मने वा अन्यने अवश्य थई छे तथा
जिनदेवने पूजवावाळाने थवी १अनिश्चयात्मक छे, अनुमानमां
एवुं पाकुं साधन बतावो के जेथी एम भासी जाय के – अन्य
देवने पूजवावाळाने इष्टनी प्राप्ति थाय ज थाय अने जिनदेवने
पूजवाथी थाय पण खरी तथा न पण थाय, कानोथी आ वात
सांभळवामां आवी होय के देश-परदेशमां अन्य देवादिकने
पूजवावाळाने तो इष्टनी प्राप्ति थई ज छे तथा जिनदेवने
पूजवावाळाने थई छे पण खरी तथा नथी पण थई. पण एवो
प्रबंध निरपेक्ष होय छे; परंतु विचार करतां तो ते सत्य भासशे
नहि; कारण के जीवन – मरण, सुख – दुःख, आपत्ति – संपत्ति,
रोग – नीरोगता, लाभ – अलाभ इत्यादि तो जैनी तथा अन्यमति
सर्वने पोतपोताना पूर्वोपार्जित कर्मोदयना आश्रयथी सामान्य
– विशेषरूपथी थाय छे.
जेम शीतला पूजवावाळो तो पोताना पुत्रना जीवन माटे
ज पूजे छे, पूजतां छतां पण ते (पुत्र) मरतो प्रत्यक्ष जोवामां
आवे छे तथा अनुमानथी पण एम भासतुं नथी के शीतला
पूजवावाळानो पुत्र जीवशे ज, तथा देश – परदेशथी सांभळवामां
पण नथी आव्युं के – शीतलाने पूजवावाळा सर्वना पुत्रो जीव्या
ज छे, ए प्रमाणे सर्व वातो समजी लेवी – जगतमां पण एम
ज कहे छे.
१. अनिश्चयात्मक = अचोक्कस.