सत्तास्वरूप ][ २७
प्राप्ति थाय छे त्यारे तुं कहे छे के – ‘साचा अंतःकरणथी सेवा
न करी’ तो हवे तेमनुं ज कर्युं आ थाय छे, एवो निश्चय थाय
ते उपाय बताव? अहीं तुं कहीश के – ‘तो जिनदेवने
पूजवावाळाने पण आ नियम देखातो नथी,’ ए तारुं कहेवुं
सत्य छे; परंतु तुं तो पोताना देवनो कर्ता कहे छे, जो अमे
पण एम कहीए तो तो दूषण आवे, परंतु अमे (जिनदेवने)
कर्ता तो कहेता नथी, पण आ जीव, तप – त्यागादि वडे वा
विषय कषाय व्यसनादि वडे शुभ – अशुभ कर्मने बांधे छे तेना
उदयथी तेने बाह्यनिमित्तादिकनुं सहकारीपणुं स्वयं थतां इष्ट
– अनिष्टनो संबंध बने छे.
प्रश्नः — तमे तो भलुं – बूरुं थवुं पोताना
परिणामोथी मान्युं तो पछी तमे देवादिकनुं पूजनादिक शा
सारूं करो छो?
उत्तरः — अमारे तो आ आम्नाय छे के – पोतानां
श्रद्धान – ज्ञान – त्याग – तपादिरूप कल्याणमार्गने ग्रहण करवां.
पण जो तेना (जिनदेवादिना) पूजनादिकथी ज लौकिक इष्टनी
प्राप्ति अने अनिष्टनी अप्राप्ति मानी तेने पूजे छे तेमने तो
मुख्यपणे पापबंध ज थाय छे, कारण के तेने देव व्हाला
लाग्या नथी पण पोतानुं प्रयोजन ज व्हालुं लाग्युं छे. ज्यारे
पोतानुं प्रयोजन साध्य थई जशे त्यारे ते देवनुं सेवन छोडी
देशे वा अन्यथा वचन बोलवा लागशे, त्यां तेने देवनुं
आस्तिक्य वा व्हालप क्यां रह्यां? तथा पूर्वकर्मनो भलो – बूरो