Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 28 of 103
PDF/HTML Page 40 of 115

 

background image
२८ ]
[ सत्तास्वरूप
उदय आववानुं कोई प्रमाण नथी माटे एवा प्रयोजनने अर्थे
जिनदेवना सेवक थवानुं कह्युं नथी. अमारे तो जिनदेवे,
संसार
मोक्षमार्गनो साचो निषेधविधि तथा तेनुं सत्य स्वरूप
दर्शाव्युं छे, जेने जाणी भव्यजीवो पोतानुं कल्याण करे छे वा
सुखरूप जे शांतिरस तेनुं अवलंबन चिंतवे छे. एवा
प्रयोजननी सिद्धि थती जाणी तेमना सेवक थवानुं कह्युं छे;
ए बंने प्रयोजन तेमनाथी ज (जिनदेवथी) सिद्ध थाय छे.
प्रश्नःतो स्तोत्रादिकमां वा पुराणोमां एवुं पण
कह्युं छे के तेमनां पूजनादिथी रोग दूर थई जाय छे, ॠद्धि
आदि आवी मळे छे वा विघ्न दूर थाय छे?
उत्तरःतमने नयविवक्षानुं ज्ञान नथी, स्तोत्रादिमां
व्यवहारनयथी तेनाथी रोगादि दूर थवां इत्यादि कह्युं छे,
कारण के
भलां कार्य थाय छे ते शुभकर्मना उदयथी थाय छे
अने ए वातो शास्त्रोमां, जगतमां वा विचार करतां पोताना
चित्तमां प्रगट जणाय छे. हवे शुभकर्मनो उदय तो त्यारे थाय
के ज्यारे प्रथम शुभनो बंध थयो होय, अने शुभकर्मनो बंध
त्यारे थाय के ज्यारे श्रद्धान
ज्ञानआचरणत्यागतप अने
पूजादि शुभकर्मनां कार्योरूप पोते प्रवर्ते, तथा शुभकार्योमां
प्रवृत्ति त्यारे थाय के ज्यारे शुभकार्योनुं स्वरूप देखाय. हवे
(तेनुं) साचुं स्वरूप वा मार्ग, पूर्वापरविरोधरहितपणे
१. प्रमाण = साबिती, मान्य करवा योग्य कारण.
२. नयविवक्षा = नयनी अपेक्षा (नयोना पडखां).