Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 29 of 103
PDF/HTML Page 41 of 115

 

background image
सत्तास्वरूप ][ २९
दर्शाववावाळा श्रीसर्वज्ञवीतरागजिनदेव ज छे. माटे सर्व
लौकिक इष्ट कार्य पण व्यवहारनयथी स्तोत्रादिकमां तेमनां कर्यां
कह्यां छे. कारण के
तेमणे ज्यारे सत्यमार्ग दर्शाव्यो त्यारे आ
जीव शुभमार्गरूप प्रवर्त्यो, ज्यारे शुभमार्गरूप प्रवर्त्यो त्यारे
नवीन शुभकर्मनो बंध थयो, ज्यारे शुभकर्मनो बंध थयो
त्यारे ते शुभकर्मनो उदय आव्यो अने ज्यारे शुभकर्मनो उदय
आवे छे त्यारे आपोआप रोगादिक दूर थई जाय छे तथा
इष्टसामग्रीनी प्राप्ति थई जाय छे, ए प्रमाणे व्यवहारथी
श्रीजिनदेवने इष्टना कर्ता तथा अनिष्टना हर्ता कह्या छे. जेम
वैद्य छे ते तो औषधादिकनो बताववावाळो छे, पण ए
औषधादिकनुं सेवन ज्यारे रोगी करे छे त्यारे तेनां रोगादिक
दूर थाय छे वा पुष्टतानी प्राप्ति थाय छे, परंतु तेना उपकार
स्मरण अर्थे व्यवहारथी एम कहीए छीए के
‘वैद्ये अमने
जीवनदान आप्युं वा रोगनी निवृत्ति करी’ ए ज प्रमाणे
मार्गनुं स्वरूप दर्शाववारूप उपकारस्मरण अर्थे स्तोत्रादिकोमां
एवी वात कही छे.
पण जे आ नयविवक्षाने तो समजे नहि अने एने ज
(जिनदेवने ज) कर्ता मानी पोते तो कल्याणमार्गने ग्रहण न
करे अने तेनाथी ज सिद्धि थवी मानी
निश्चिंत रहे ते तो
अज्ञानी पण छे तथा पापी पण छे. तथा जे तेने कर्ताहर्ता
माने छे अने पोते पण शक्ति अनुसार शुभकार्योमां प्रवर्ते छे
१. निश्चिंत = निःशंक , बेफीकर.