लौकिक इष्ट कार्य पण व्यवहारनयथी स्तोत्रादिकमां तेमनां कर्यां
कह्यां छे. कारण के
नवीन शुभकर्मनो बंध थयो, ज्यारे शुभकर्मनो बंध थयो
त्यारे ते शुभकर्मनो उदय आव्यो अने ज्यारे शुभकर्मनो उदय
आवे छे त्यारे आपोआप रोगादिक दूर थई जाय छे तथा
इष्टसामग्रीनी प्राप्ति थई जाय छे, ए प्रमाणे व्यवहारथी
श्रीजिनदेवने इष्टना कर्ता तथा अनिष्टना हर्ता कह्या छे. जेम
वैद्य छे ते तो औषधादिकनो बताववावाळो छे, पण ए
औषधादिकनुं सेवन ज्यारे रोगी करे छे त्यारे तेनां रोगादिक
दूर थाय छे वा पुष्टतानी प्राप्ति थाय छे, परंतु तेना उपकार
स्मरण अर्थे व्यवहारथी एम कहीए छीए के
मार्गनुं स्वरूप दर्शाववारूप उपकारस्मरण अर्थे स्तोत्रादिकोमां
एवी वात कही छे.
करे अने तेनाथी ज सिद्धि थवी मानी
माने छे अने पोते पण शक्ति अनुसार शुभकार्योमां प्रवर्ते छे