सत्तास्वरूप ][ ३१
करे छे, तेम जेनामां ज्ञान थोडुं होय अने कषाय घणो होय
तो तेनी निंदा ज करे छे. माटे विचार करतां निंदा कराववावाळा
दोष तो अज्ञान – रागादिक ज छे अने गुण, साची वीतरागता
ज छे, कारण के – पुण्यवानगृहस्थ पण त्यागी – तपस्वीनी पूजा
करे छे, तेथी जणाय छे के – सर्व लौकिक इष्ट वस्तुओथी पण
त्याग वैराग्य श्रेष्ठ छे. त्यां जेने संपूर्ण सत्यज्ञान – वीतरागता
प्रगट थई छे ते तो सर्वोत्कृष्ट पूजवा योग्य छे अने एने ज
परमगुरु कहीए छीए तथा जेने ए सत्यज्ञान – वीतरागता पूर्ण
थयां नथी ते पण एकदेश पूज्य छे, एम जाणवुं.
प्रश्नः — तमारा देवमां ज ज्ञाननी पूर्णता थई छे
अने अन्य देवोने नथी थई, एम केवी रीते जाणवामां आवे
छे ते कहो?
उत्तरः — अमे १निरपेक्ष थई कहीए छीए के – जेना
वचनमां वा मतमां २प्रत्यक्ष (प्रमाणथी), ३अनुमान (प्रमाणथी)
१. निरपेक्ष = निःस्पृह
२. प्रमाण = साचा ज्ञानने प्रमाण कहे छे. प्रत्यक्ष प्रमाण = जे
पदार्थने स्पष्ट जाणे छे ते विशदं प्रत्यक्षम् = स्पष्ट ज्ञान ते
प्रत्यक्ष प्रमाण छे.
३. अनुमानप्रमाण = साधनात् साध्य विज्ञानमनुमानम् = साधन
(हेतु)थी साध्य (सिद्ध करवा योग्य वस्तु)नुं ज्ञान थवुं, तेने
अनुमान प्रमाण कहे छे.