Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३२ ]
[ सत्तास्वरूप
आगम (प्रमाणथी) तथा न्यायरूप लौकिक स्ववचनथी विरोध
न आवे ते ज सर्वज्ञवीतराग छे, कारण केतेने सर्वज्ञ-
वीतरागपणुं प्रत्यक्ष तो भासतुं नथी, प्रत्यक्ष तो केवलीने ज
भासे छे तथा आगममां लखेलुं होवाथी ज मानी लईए तो तेने
(पोताना) ज्ञानमां तो ए विषय आव्यो नथी मात्र अन्यना
वचनथी मानी लीधुं, त्यां तेने वस्तुनुं यथार्थज्ञान तो न थयुं,
केवल वचन श्रवण थयुं. एवा (मात्र) आज्ञाप्रधानीने
अष्टसहस्री आदि ग्रंथोमां अज्ञानी कह्यो छे.
माटे प्रयोजनभूत जे वातो आगममां कही छे तेनो
प्रत्यक्षअनुमानादिथी पोताना ज्ञानमां निश्चय करी आगम
उपर प्रतीति लाववा योग्य छे. ए प्रश्नोत्तरोनुं विशेष व्याख्यान
प्रमाणनिश्चयना कथनमां लखीशुं. अहीं अनुमान द्वारा
अर्हन्तना स्वरूपनो निर्णय थशे.
अनुमान तो त्यारे थाय के ज्यारे साध्यसाधननी
व्याप्तिरूप सत्य तर्क पहेलां थाय. हवे अहीं
१. आगमप्रमाण = आप्तना वचनादिथी उत्पन्न थयेला ज्ञानने
आगम प्रमाण कहे छे.
२. व्याप्ति = एकना (साधनना) होवाथी बीजानुं (साध्यनुं) होवापणुं
अने बीजाना न होवाथी एकनुं न होवापणुं एवा संबंधने व्याप्ति
कहे छे. दा.त. ज्यां ज्यां धूमाडो (साधन) होय त्यां त्यां अग्नि
(साध्य) होय, ज्यां ज्यां अग्नि न होय त्यां त्यां धूमाडो न होय,
एवा अग्नि अने धूमाडाना संबंधने व्याप्ति कहे छे.
३. तर्क = अने ते संबंधना ज्ञानने तर्क कहे छे.