Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ ३३
असिद्ध विरुद्ध, अनैकांतिक अने अकिंचित्कर ए चार
दूषणरहित अन्यथानुपपत्तिरूप साधननो प्रथम ज निर्णय
करवो. त्यां तमे जे अर्हंतदेवने पूजो छोहंमेशां दर्शन करो छो
१. असिद्ध = जे साधनना अभावनो निश्चय होय अथवा तेना
सद्भावमां संदेह होय तेने असिद्ध हेत्वाभास कहे छे, जे
साधननो साध्य साथे सर्वथा अविनाभाव न होय तेने असिद्ध
साधन कहे छे. दा.त. चक्षुनो विषय होवाथी शब्द अनित्य छे,
शब्द चक्षुनो विषय न होवाथी ‘चक्षुनो विषय’ ए साधन खरुं
नथी.
२. विरुद्ध = साध्यथी विरुद्ध पदार्थनी साथे साधननी व्याप्तिने
विरुद्ध हेत्वाभास कहे छे. सत् होवाथी बधुंय नाशवान छे.
साध्य जे नाशवान तेनाथी विरुद्ध जे नित्य तेनी साथे सत्नी
व्याप्ति छे, तेथी ‘सत्’ ते विरुद्ध हेत्वाभास छे.
३. अनैकान्तिक = विपक्ष (साध्यना अभाववाळुं स्थळवस्तु)मां
पण जे मळी आवे तेने अनैकांतिक हेत्वाभास कहे छे. साधन
होवा छतां कोई स्थळे साध्य देखाय अने कोई स्थळे साध्य न
देखाय एवा साधनने अनैकांतिक हेत्वाभास कहे छे. दा.त. आ
ओरडामां धूमाडो छे, केम के तेमां अग्नि छे. अग्नि होवा छतां
क्यांक धूमाडो होय छे अने क्यांक नथी होतो, माटे अग्निने
अनैकांतिक हेत्वाभास कहे छे.
४. अकिंचित्कर = जे हेतु साध्यनी सिद्धि करवामां समर्थ न होय
तेने अकिंचित्कर हेत्वाभास कहे छे.
५. अन्यथानुपपत्ति = साध्य विना न मळी आवे एवुं,
अविनाभावी.