Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


Page 34 of 103
PDF/HTML Page 46 of 115

 

background image
३४ ]
[ सत्तास्वरूप
ते मात्र कुलबुद्धिथी ज करो छो के लौकिकप्रद्धति वडे ज करो
छो के तेमनी प्रतिमा बिराजे छे तेनी आकृति, नानो
मोटो
आकार वा वर्ण भेद उपर ज तमारी द्रष्टि छे? अथवा कांई
अर्हंतनुं मूळ स्वरूप पण भास्युं छे?
त्यारे ते कहे छे के‘कुलपद्धतिमां पण तेनुं ज नाम
कहेवाय छे, शास्त्रमां पण सांभळ्युं छे केअढारदोष रहित,
छेंतालीस गुणो सहित बिराजमान, ध्यानमुद्राना धारक,
१. अढार दोष = (१) जन्म (२) जरा (३) तृषा (४) क्षुधा (५)
विस्मय (६) आर्त (७) खेद (८) रोग (९) शोक (१०) मद
(११) मोह (१२) भय (१३) निद्रा (१४) चिंता (१५) स्वेद
(१६) राग (१७) द्वेष (१८) मरण ए अढार दोष छे.
२. ४६ गुणो = अतिशय = चमत्कार, कोई विशेष वात.
जन्मना १० अतिशय = (१) मळमूत्र रहित शरीर
(२) परसेवो न थवो (३) सफेद लोही (४) वज्रॠषभनाराच
संहनन (५) समचतुस्र संस्थान (६) अद्भूतरूप (७) अति
सुगंध (८) १००८ लक्षण (९) अतुलबल (१०) प्रियवचन.
केवलज्ञानना १० अतिशय = (१) उन्मेष रहित नेत्र
(२) नख अने वाळनुं न वधवुं (३) भोजननो अभाव
(४) वृद्ध न थवुं (५) छाया न पडवी (६) चौमुख देखावुं
(७) सो जोजन सुधी सुभिक्ष (८) उपसर्ग अथवा दुःख न
थवुं (९) आकाश गमन (१०) समस्त विद्यामां निपुर्णता.
देवकृत १४ अतिशय = (१) भगवाननी अर्धमागधी भाषा खरवी