Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ ३५
अनंतचतुष्टय सहित, समवसरणादि लक्ष्मीथी विभूषित, स्वर्ग
मोक्षना दाता तथा दुःखविघ्नादिना हर्ता (अर्हंत) छे. इत्यादि
गुणो शास्त्रोथी सांभळ्या छे तथा स्तोत्रादि पाठो भणीए छीए
तेमां पण ए ज वार्ता कही छे, तेथी अमे तेनुं पूजन करीए
छीए, दर्शन करीए छीए.’ तेने अमे कहीए छीए के
तमे ए वातो कही ते तो बधी सत्य छे, परंतु तमने
तो ए वातोनुं युक्तिपूर्वक ज्ञान, आस्तिक्यता वा रसरूप
सेवकपणुं थयुं भासतुं नथी, कारण के
तमे कुलपद्धतिमां तेना
ज कहेवाओ छो ते तो साचुं, पण तमे जैनी कहेवाओ छो तेनो
तो आज अर्थ छे के
जेने जिनदेवनुं ज सेवकपणुं होय ते जैनी,
जेम पतिव्रता स्त्री सुखदुःखादि सर्व अवस्थामां पोताना
(२) जीवोमां मित्रता (३) बधी ॠतुना फळफूल फळवा
(४) पृथ्वी दर्पणसम थवी (५) सुखदायक पवन चालवो (६)
सुखप्रद विहार थवो (७) पृथ्वी कांकरा पथ्थर वगरनी थवी (८)
सुवर्ण कमल रचना (९) पृथ्वी धान्य पूर्ण थवी (१०) आकाश
निर्मळ (११) दिशाओ निर्मळ (१२) जयघोष (१३) धर्मचक्रनुं
चालवुं (१४) सुगंधित जळनी वर्षा.
प्रातिहार्य ८ = विशेष महिमाबोधक चिह्न; अर्हंतना समवसरणमां
आठ प्रातिहार्य होय छे. (१) अशोकवृक्ष (२) सिंहासन
(३) त्रण छत्र (४) भामंडळ (५) दिव्यध्वनि (६) पुष्प वृष्टि
(७) चमर चोसठ (८) दुदुंभि वाजां वागवा.
अनंतचतुष्टय = (१) अनंतज्ञान (२) अनंतदर्शन (३) अनंतसुख
(४) अनंतवीर्यए चारने अनंतचतुष्टय कहे छे.