Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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३६ ]
[ सत्तास्वरूप
पतिना नामनी ज कहेवाय छे अने पुत्र छे, ते सुखदुःखादि
सर्व अवस्थामां पोतानो जे जातिनो पिता छे ते ज जातिनो
कहेवाय छे, तेम तमने तो ‘जिनदेव ज मारा स्वामी छे’ एवो
तेनो आस्तिक्यभाव पण साचो भासतो नथी; कारण के
सर्व
मतवाळा पोतपोताना इष्टदेवना सेवक थई प्रवर्ते छे. परंतु
तमारामां तो ए पण नथी ते तमे शांतद्रष्टिपूर्वक विचारी जुओ.
वळी (तमे कह्युं के
) ‘शास्त्रमां सांभळ्युं छे.’ पण अमे पूछीए
छीए केशास्त्रमां तो लख्युं ज छे, परंतु तमने क्यां भास्युं छे
के‘देव, अढार दोष रहित छे?’ अहीं कोई तर्क करे के
श्वेताम्बरादिक तो युक्तिपूर्वक उत्तर आपवाने समर्थ छे अथवा
दोष रहित छे, तो तेने (देवने) फुलमाळा पहेराववी वा
शरदपूर्णिमाना उत्सव करवा इत्यादि दोषनां कार्यो शा माटे
बनावो छो! वळी ए अढार दोषोमां केटला दोषो पुद्गलाश्रित
छे एनो निर्णय कर्यो होत वा अढार दोष रहितपणुं थतां ज
देवपणुं आवे छे, एवो निश्चय कर्यो होत वा आमना अढार
दोष केवी रीते गया छे तेनो युक्तिपूर्वक निश्चय कर्यो होत अने
त्यार पछी दोषसहितमां देवपणुं नहि मानतां आमां ज
(देवपणुं) मानता होत त्यारे तो ‘अढार दोषरहित अर्हंत छे’
एवां वाक्यो बोलवां तमारां साचां होय.
वळी, तमे कह्युं के‘छेतालीसगुण बिराजमान छे’ पण
ते बधाय अर्हंतोमां तो छे ज नहि, तमे कांई निर्णय पण कर्यो
छे के एम कहे ज जाओ छो? त्यां छेतालीस गुण तो आ
छे
जन्मना दश अतिशय, केवलज्ञानना दश अतिशय, देवकृत