कहेवाय छे, तेम तमने तो ‘जिनदेव ज मारा स्वामी छे’ एवो
तेनो आस्तिक्यभाव पण साचो भासतो नथी; कारण के
वळी (तमे कह्युं के
दोष रहित छे, तो तेने (देवने) फुलमाळा पहेराववी वा
शरदपूर्णिमाना उत्सव करवा इत्यादि दोषनां कार्यो शा माटे
बनावो छो! वळी ए अढार दोषोमां केटला दोषो पुद्गलाश्रित
छे एनो निर्णय कर्यो होत वा अढार दोष रहितपणुं थतां ज
देवपणुं आवे छे, एवो निश्चय कर्यो होत वा आमना अढार
दोष केवी रीते गया छे तेनो युक्तिपूर्वक निश्चय कर्यो होत अने
त्यार पछी दोषसहितमां देवपणुं नहि मानतां आमां ज
(देवपणुं) मानता होत त्यारे तो ‘अढार दोषरहित अर्हंत छे’
एवां वाक्यो बोलवां तमारां साचां होय.
छे के एम कहे ज जाओ छो? त्यां छेतालीस गुण तो आ
छे