सत्तास्वरूप ][ ३७
चौद अतिशय, आठ प्रातिहार्य अने चार अनंतचतुष्टय. पण
अर्हंतदेव तो सात प्रकारना छे – १पंचकल्याणयुक्त तीर्थंकर, त्रण
कल्याणयुक्त तीर्थंकर, बे कल्याणयुक्त तीर्थंकर, सातिशय केवली,
सामान्यकेवली, उपसर्गकेवली तथा अंतकृतकेवली. हवे ए सर्वने
विषे छेतालीश गुण केवी रीते संभवे? ए तो केवल एक
पंचकल्याणकयुक्त तीर्थंकरमां ज ए बधा होय छे. ए सात
प्रकारना अर्हंतोनुं स्वरूप आ प्रमाणे छेः —
१. जे पूर्वभवमां तीर्थंकरप्रकृति बांधी तीर्थंकर थाय छे
तेमने तो नियमथी गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान अने निर्वाण ए
पांचे कल्याणक थाय छे, तेमने तो छेतालीश गुणो होवा
संभवे छे.
२. जे आ मनुष्यपर्यायना ज भवमां गृहस्थावस्थामां
ज तीर्थंकरप्रकृति बांधे छे तेमने तप, ज्ञान अने निर्वाण ए त्रण
कल्याणक ज थाय छे एटले तेमने जन्मकल्याणकना दश
अतिशय होता नथी मात्र छत्रीस गुणो ज होय छे.
३. जे आ मनुष्यपर्यायमां ज मुनिदीक्षा लीधा पछी
तीर्थंकरप्रकृति बांधे छे तेमने ज्ञान अने निर्वाण ए बे कल्याणक
१. पंचकल्याणक = (१) गर्भ (२) जन्म (३) तप (४) ज्ञान (५)
निर्वाण. आ पांच मांगलिक प्रसंगो उपर तीर्थंकरोनी विशेष
भक्ति इंद्रादि देवो करे छे. आ दरेक मांगलिक कल्याणकारक
प्रसंगने कल्याणक कहे छे.