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[ सत्तास्वरूप
थाय छे एटले तेमने पण जन्मना दश अतिशय विना छत्रीस
गुणो होय छे
४. जेमने तीर्थंकरप्रकृतिनो उदय नथी होतो पण जे
गंधकुटीआदि सहित होय छे तेने सातिशयकेवली कहीए छीए.
५. जेमने केवलज्ञान तो उत्पन्न थयुं होय पण
गंधकुटीआदि न होय तेने सामान्यकेवली कहीए छीए.
६. जे केवलज्ञान उत्पन्न थतां ज लघुअंतर्मुहूर्तकाळमां
निर्वाण प्राप्त करी ले छे तेने अंतकृतकेवली कहीए छीए
तथा —
७. जेमने उपसर्गअवस्थामां ज केवलज्ञान थयुं होय
तेमने उपसर्गकेवली कहीए छीए.
हवे, अतिशयकेवलीने जन्मना अतिशय तो होता नथी
मात्र आठ प्रातिहार्य, चौद देवकृतअतिशय, दश केवलज्ञानना
अतिशय तथा चार अनंत चतुष्टय होय छे. सामान्यकेवली,
उपसर्गकेवली अने अंतकृतकेवलीने पण जन्मादिकना अतिशय
संभवता नथी, माटे निर्णय कर्या विना ज ‘छेतालीस
गुणसंयुक्त अर्हंतदेव छे’ ए प्रमाणे कहेवुं (ठीक) संभवतुं
नथी, कारण छेतालीस गुण तो पंचकल्याणकसहित तीर्थंकर होय
तेमने ज होय छे.
वळी, ध्यानमुद्रा जोईने पूजो छो तो तेमां आटली वात
पण अन्य जाणवी जोईए के – ध्यानमुद्रा आवी पूज्य केम छे?