Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सत्तास्वरूप ][ ३९
वा ध्यानमुद्रा आवी ज छे, वा आवी ध्यानमुद्रा ज शुद्ध वा
शुभ चिंत्वननो आधार छे, वा आवी साची ध्यानमुद्रा आमने
आवी ज संभवे छे
अन्यने संभवती नथी तथा आवी
ध्यानमुद्राने हुं शा माटे पूजुं छुं? ए प्रयोजन विचारवुं जोईए.
ए प्रमाणे युक्तिपूर्वक निश्चय करी जे पूजे छे
दर्शन करे छे,
तेने ज साचा प्रयोजननी सिद्धि थाय छे.
वळी, तमे कह्युं के‘अनंतचतुष्टय सहित बिराजमान छे
तेथी तेने पूजीए छीएदर्शन करीए छीए.’ ए तो सत्य छे, ते
तो अनंतचतुष्टयसहित बिराजमान छे ज तथा शास्त्रोमां पण
लखेल छे ज, परंतु तमारे तो तेनो तमारा पोताना ज्ञानमां निर्णय
करवो हतो? अनंतचतुष्टयनुं स्वरूप शुं छे? तथा तेने विषे
पूज्यपणुं केवी रीते आवे छे अने तेमने विषे केवी रीते प्राप्त थाय
छे? वा अनंतचतुष्टयसहितने अमे शा सारू पूजीए छीए?
एवो पण तमे कदी निश्चय कर्यो छे? के मात्र लौकिकपद्धतिथी ज
ए वचनो कहीने पूजो छो? ते तमे सारी रीते विचार करी जुओ
के तेनुं तमने कांई ज्ञान थयुं छे के नहि?
वळी, तमे कह्युं के‘समवसरणादि लक्ष्मीसंयुक्त छे’ पण
त्यां प्रथम तो समवसरणादि लक्ष्मी तेमने (प्राप्त) थई छे के
नहि एवुं प्रमाण जोईए. तथा
समवसरणमां शुं रचना छे
ते विशेष जाणवुं जोईए वा ते रचना, वीतरागदेवनी निकटमां
इंद्रे शा माटे बनावी? ए रचनाथी संसार केवी रीते पोषी
१. समवसरण = केवलज्ञानीनी धर्मसभा.