उत्कर्ष माटे पोते प्रयत्नो करे छे, एम ते माने छे. ए रीते अनेक
जातना कार्यक्रमोमां जीवो रोकातां साचा धर्मनुं स्वरूप के देव, गुरु
अने शास्त्रोनुं स्वरूप नक्की करवा तरफ लक्ष घणे भागे जतुं नथी,
पोते मानेला धर्ममां रूढिगत चालती क्रियाओने वधारे के ओछे
अंशे आचरे छे. ओछा के वधारे प्रमाणमां धर्मबुद्धिथी आ प्रमाणे
धर्मक्रियाओ करीने पोते धर्मी छे एम मानी, ए मान्यतामां ते
संतोषाई जाय छे, अने पोतानी फरज अदा करे छे एम गणे
छे, अगर पोताने कृतकृत्य माने छे.
होय अने (ओघद्रष्टिए) तेने ते साचा तरीके मानतो होय तो
पण साचा देवना अने साचा गुरुना गुणो शुं छे अने साचां
शास्त्रो कयां कहेवाय, देव
अनुयायी नथी; तेनी मान्यतामां कां तो संदेह रहे छे, कां तो
ऊंधाई रहे छे अथवा तो अनिर्णय रहे छे; तेथी साचा ज्ञाननी
द्रष्टिए ते मान्यता दोषित छे. शास्त्रनी परिभाषामां आ मान्यताने
‘गृहीत मिथ्यात्व’ कहे छे. आ मान्यतामां मिथ्यापणुं होवाथी ते
मिथ्यात्व छे अने जन्म थया पछी ते ग्रहण कर्युं होवाथी तेने
गृहीत कहेवामां आवे छे. ‘गृहीत मिथ्यात्व’नुं स्वरूप अने तेने