Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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५० ]
[ सत्तास्वरूप
अर्थ :जेम रोगीने एक औषधि खावाथी आराम
थई जाय तो ते बीजी औषधिनुं सेवन शा माटे करे? ते
ज प्रमाणे एक विषयसामग्री प्राप्त थतां ज दुःख मटी जाय
तो ते बीजी विषयसामग्री शा माटे इच्छे? कारण के इच्छा
तो रोग छे अने ए इच्छा मटाडवानो इलाज विषयसामग्री
छे, हवे एक प्रकारनी विषयसामग्रीनी प्राप्तिथी एक प्रकारनी
इच्छा दबाय छे, परंतु तृष्णा
इच्छा नामनो रोग तो
अंतरंगमांथी मटतो ज नथी, तेथी बीजी अन्य प्रकारनी
इच्छा वळी उपजी आवे छे. ए प्रमाणे सामग्री मळतां
मळतां आयुष्य पूर्ण थई जाय छे अने इच्छा तो बराबर
त्यां सुधी कायम ज लागी रहे छे. त्यार पछी बीजी पर्याय
पामे छे त्यारे ते पर्याय संबंधी त्यांनां कार्योनी नवीन इच्छा
उत्पन्न थाय छे, ए प्रमाणे संसारमां दुःखी थयो थको भ्रमण
करे छे.
वळी, अनिष्टसामग्रीना संयोगना कारणोने तथा
इष्टसामग्रीना वियोगना कारणोने विघ्न मानो छो पण तमे
कांई (एनो) विचार सन्मुख थईने कर्यो छे? जो ए ज
विघ्न होय तो मुनि आदि त्यागी-तपस्वी तो ए कार्योने
अंगीकार करे छे, माटे विघ्ननुं मूळ कारण अज्ञान
रागादिक
ज छे; ए प्रमाणे दुःख वा विघ्ननुं स्वरूप जाण. तथा तेनो
इलाज सम्यग्दर्शन
ज्ञानचारित्र छे तेना स्वरूपनो उपदेश
आपी प्रवृत्ति कराववावाळा श्रीअर्हंतदेवाधिदेव छे. ए प्रमाणे