Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ५७
जिनमतमां आगमआश्रयहेतु अने स्वानुभव विना, कई
अपेक्षा अबाध वा सबाध छे एवो निर्णय करतो नथी. तथा
कोई जीव, बाह्यगुणोथी (मात्र) व्यवहाररूप वस्तुनो युक्तिपूर्वक
निर्णय पण करी ले छे, परंतु निश्चयाश्रित साचुं स्वरूप न
भास्युं तेथी ते मिथ्याद्रष्टि ज छे.
ए प्रमाणे आ संसारमां अनंतानंतकाळ परिभ्रमण
करतां करतां ज व्यतीत थयो छे, तेथी हवे तमने कहीए छीए
के
हवे तो आटली वातोनो अवश्य निर्णय करी ल्यो के
आगमथी, युक्तिथी वा स्वानुभवथी संसारमां परिभ्रमण आ
ज प्रमाणे थाय छे के नथी थतुं? वा संसारमां उपर कहेली
सर्व वातो दुर्लभ छे के नथी? हवे तमारे
अनध्यवसायी रहेवुं
योग्य नथी, आ मनुष्यपर्यायरूप रस पामवो महा दुर्लभ छे,
नहि तो पछी पस्ताशो अने कांई गरज सरशे नहि. अनंतानंत
जीवो आ ज प्रमाणे दुःखी थया थका काळ पूर्ण करे छे पण
हवे तमे तो आ अवसर पाम्या छो! मनुष्यपर्याय, उच्चकुल,
दीर्घआयु, पांचे इंद्रियोनी परिपूर्णता, रूडा क्षेत्रमां वास,
सत्संगनी प्राप्ति, पापथी भयभीतपणुं, धर्मबुद्धिनी प्राप्ति,
श्रावककुलनी प्राप्ति, सत्यशास्त्रोनुं श्रवण, सत्य उपदेशदातानो
संबंध मळवो, सत्यमार्गनो आश्रय मळवो, सत्यदेव आदिना
१. अबाध = दोष वगरनी, विरोध वगरनी.
२. सबाध = दोषवाळी, विरोधवाळी.
३. अनध्यवसायी = बेखबरूं.