छे; छतां आ काळमां पण महाभाग्यना उदयथी ए बधी वातो
प्राप्त थई छे.
ज देव जाणी संतुष्ट थई रह्या छो के तमने प्रतिमाजीनो
नानो
स्वरूप भास्युं छे? ते तमे तमारा चित्तमां विचारी जुओ.
जो नथी भास्युं तो ज्ञान विना कोनुं सेवन करो छो? तेथी
तमारे जो पोतानुं भलुं करवुं छे तो सर्व आत्महितनुं मूळ
कारण जे ‘आप्त’ तेनो साचो स्वरूपनिर्णय करी ज्ञानमां
लावो. कारण के
सम्यक्चारित्र, सम्यग्दर्शन
उपजे छे अने ए वाणी कोई वीतरागपुरुषना आश्रये छे,
माटे जे सत्पुरुष छे तेमणे पोताना कल्याण अर्थे सर्व सुखनुं
मूळकारण जे आप्तअर्हंत सर्वज्ञ तेनो युक्तिपूर्वक सारी रीते
सर्वथी प्रथम निर्णय करी (तेमनो) आश्रय लेवो योग्य छे.
कह्युं छे केः