निर्बाधरूपथी तेमनुं स्वरूप लख्युं छे ज पण हवे जेनो उपदेश
सांभळीए छीए, जेना कहेला मार्ग उपर चालीए छीए, वा
जेनी सेवा, पूजा आस्तिक्यता, जाप, स्मरण, स्तोत्र,
नमस्कार अने ध्यान करीए छीए एवा जे अर्हंतसर्वज्ञ,
तेमनुं प्रथम पोताना ज्ञानमां स्वरूप तो भास्युं ज नथी, तो
तमे निश्चय कर्या विना कोनुं सेवन करो छो? लोकमां पण
आ प्रमाणे छे के अत्यंत निष्प्रयोजन वातनो पण निर्णय करी
चारित्र ज्ञानमां नियत छे; ज्ञान आगमथी थाय छे; आगम
यथार्थ उपदेशमांथी प्रवर्ते छे; यथार्थ उपदेश आप्तपुरुष द्वारा
होय छे; अने आप्त रागादि सर्व दोषथी रहित छे, माटे
सत्पुरुषो ते सर्व सुखना दाता आप्तने युक्तिथी भली रीते
विचारीने कल्याणने माटे तेनो आश्रय करो.