Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ५९
सर्वः प्रेप्सति सत्सुखाप्तिमचिरात् सा सर्वकर्मक्षयात्
सद्वृतात्स च तच्च बोधनियतं सोप्यागमात् स श्रुतेः ।।
सा चाप्तात् स च सर्वदोषरहितो रागादयस्तेऽप्यत्
स्तं युक्त्या सुविचार्य सर्वसुखदं सन्तः श्रयन्तु श्रियै ।।।।
(आत्मानुशासन)
ए प्रमाणे रागादि सर्व दोषरहित जे आप्त, तेनुं
निश्चयपणुं ज्ञानमां करवुं. त्यां ते तो अज्ञानरागादि
दोषरहित छे ज, प्रतिमा पण तेमनी ज छे वा शास्त्रोमां
निर्बाधरूपथी तेमनुं स्वरूप लख्युं छे ज पण हवे जेनो उपदेश
सांभळीए छीए, जेना कहेला मार्ग उपर चालीए छीए, वा
जेनी सेवा, पूजा आस्तिक्यता, जाप, स्मरण, स्तोत्र,
नमस्कार अने ध्यान करीए छीए एवा जे अर्हंतसर्वज्ञ,
तेमनुं प्रथम पोताना ज्ञानमां स्वरूप तो भास्युं ज नथी, तो
तमे निश्चय कर्या विना कोनुं सेवन करो छो? लोकमां पण
आ प्रमाणे छे के अत्यंत निष्प्रयोजन वातनो पण निर्णय करी
अर्थःसर्व जीवो भला सुखनी प्राप्तिने इच्छे छे; ते प्राप्ति
सर्व कर्मना क्षयथी थाय छे, सर्व कर्मनो क्षय चारित्रथी थाय छे;
चारित्र ज्ञानमां नियत छे; ज्ञान आगमथी थाय छे; आगम
यथार्थ उपदेशमांथी प्रवर्ते छे; यथार्थ उपदेश आप्तपुरुष द्वारा
होय छे; अने आप्त रागादि सर्व दोषथी रहित छे, माटे
सत्पुरुषो ते सर्व सुखना दाता आप्तने युक्तिथी भली रीते
विचारीने कल्याणने माटे तेनो आश्रय करो.