Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
जशे. वळी जे कुलादि प्रवृत्ति वडे, पंचायतपद्धतिथी, रोगादि
मटाडवा अर्थे अविनयादिरूप अयथार्थ प्रवर्ते छे वा
लौकिकप्रयोजननी वांछा पूर्वक यथार्थ के अयथार्थ प्रवर्ते छे
अने (उपरथी) आत्मकल्याणनुं समर्थन करे छे, तेने तो
पापबंध ज थाय छे. माटे जेने आत्मकल्याण करवुं छे तेणे
तो आ दश वातो द्वारा निर्णय करीने जे साचा देव भासे
तेमना, आस्तिक्यता लावी सेवक थवुं योग्य छे. ए दश
वातो कई छे ते कहीए छीए
सत्ता, स्वरूप, स्थान,
फळ, प्रमाण, नय, निक्षेपसंस्थापना, अनुयोग,
आकारभेद अने १०वर्णभेद. हवे तेनुं सामान्य स्वरूप
कहीए छीएः
१. अन्य कोई कहे के अर्हंतदेव नथी वा पोताना
दिलमां ज एवो संदेह ऊपजी आवे, तो युक्ति आदिथी वा
अन्यना उपदेश आदिथी अर्हंतदेवना अस्तित्वनी आस्था
लाववानुं बळ पोताना चित्तमां प्राप्त थवुं अथवा अर्हंतना
अस्तित्वनी स्पष्ट भावना थई जवी, तेनुं नाम सत्तानिश्चय
छे.
२. अर्हंतदेवनुं बाह्यअभ्यंतर स्वरूप जेवुं छे तेवो
ज तेनो साचो निश्चय थवो, तेनुं नाम स्वरूपनिश्चय छे.
३. वळी सांख्य, बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक, नास्तिक,
मीमांसक, चार्वाक अने जैन ए मतोमां वा वर्तमानकाळमां
श्वेताम्बर, रक्ताम्बर, पीताम्बर, ढुंढिया अने संवेगी आदि