मटाडवा अर्थे अविनयादिरूप अयथार्थ प्रवर्ते छे वा
लौकिकप्रयोजननी वांछा पूर्वक यथार्थ के अयथार्थ प्रवर्ते छे
अने (उपरथी) आत्मकल्याणनुं समर्थन करे छे, तेने तो
पापबंध ज थाय छे. माटे जेने आत्मकल्याण करवुं छे तेणे
तो आ दश वातो द्वारा निर्णय करीने जे साचा देव भासे
तेमना, आस्तिक्यता लावी सेवक थवुं योग्य छे. ए दश
वातो कई छे ते कहीए छीए
अन्यना उपदेश आदिथी अर्हंतदेवना अस्तित्वनी आस्था
लाववानुं बळ पोताना चित्तमां प्राप्त थवुं अथवा अर्हंतना
अस्तित्वनी स्पष्ट भावना थई जवी, तेनुं नाम सत्तानिश्चय
छे.
श्वेताम्बर, रक्ताम्बर, पीताम्बर, ढुंढिया अने संवेगी आदि