Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
जेम कोई पुरुषे दिल्ली न देखी तो तेना न देखावाथी
कांई दिल्लीनो अभाव तो कही शकाय नहि, अर्थात् दिल्ली तो
छे ज. ते ज प्रमाणे तमने सर्वज्ञने देखवानो उपाय तो न
भास्यो वा सर्वज्ञ न देख्या तो तमे अज्ञानी छो, तमने न
भासवाथी कांई सर्वज्ञनो अभाव तो कही शकाय नहि. सर्वज्ञ तो
छे ज. ए प्रमाणे श्री श्लोकवार्तिकमां पण कह्युं छे. यथाः
स्वसंबंधि यदीदं स्याद्ब्यभिचारि पयोनिधेः
अंभः कुंभादिसंख्यानैः सद्भिरज्ञायमानकैः ।।१४।।
(प्र. अ. पानुं१३)
वळी, जे परसंबंधि ज्ञापकानुपलंभ नामना हेतुने ग्रहण
करे अर्थात् पर जे अन्य, तेमने सर्वज्ञ जाणवानो उपाय न
भास्यो वा तेणे सर्वज्ञ न दीठा, तेथी ए परनी अपेक्षाए
सर्वज्ञनी नास्ति कहे छे. त्यां तेने पूछीए छीए के
तमाराथी
पर तो अमे पण छीए, हवे अमे कहीए छीए के ‘अमने
सर्वज्ञने जाणवाना उपायरूप ज्ञान भास्युं छे तेनाथी सर्वज्ञने
अमे जाण्या छे, तेथी तमे परअपेक्षाए सर्वज्ञनी नास्ति केवी
रीते कहो छो? कारण के अमे तमने तमारा वचनथी सर्वज्ञनो
आस्तिक्यतारूप निर्णय करावी आपशुं अने फरी तमे
अर्थ :‘सर्वज्ञने जणावनारुं प्रमाण मने पोताने उपलब्ध
नथी, तेथी सर्वज्ञ नथी.’ एम मानवामां आवे तो समुद्रना
जळनी (चोक्कस) घटसंख्या जे तने पोताने अज्ञात होवा छतां
विद्यमान छे, तेनी साथे व्यभिचार आवे छे.