छे ज. ते ज प्रमाणे तमने सर्वज्ञने देखवानो उपाय तो न
भास्यो वा सर्वज्ञ न देख्या तो तमे अज्ञानी छो, तमने न
भासवाथी कांई सर्वज्ञनो अभाव तो कही शकाय नहि. सर्वज्ञ तो
छे ज. ए प्रमाणे श्री श्लोकवार्तिकमां पण कह्युं छे. यथाः
भास्यो वा तेणे सर्वज्ञ न दीठा, तेथी ए परनी अपेक्षाए
सर्वज्ञनी नास्ति कहे छे. त्यां तेने पूछीए छीए के
सर्वज्ञने जाणवाना उपायरूप ज्ञान भास्युं छे तेनाथी सर्वज्ञने
अमे जाण्या छे, तेथी तमे परअपेक्षाए सर्वज्ञनी नास्ति केवी
रीते कहो छो? कारण के अमे तमने तमारा वचनथी सर्वज्ञनो
आस्तिक्यतारूप निर्णय करावी आपशुं अने फरी तमे
जळनी (चोक्कस) घटसंख्या जे तने पोताने अज्ञात होवा छतां
विद्यमान छे, तेनी साथे व्यभिचार आवे छे.