Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ६७
विरुद्धवचन कहेता जशो अने न्याय थयेल जो अमारी वात
साची रही जाशे तो एमां मतपक्षरूप परस्पर व्याघात थशे,
तथा जो न्यायमां प्रमाण द्वारा तेनाथी सिद्ध न करवामां आवे
तो अमारी सिद्धि जूठ्ठी पडी. माटे अमने जेम (तेनी सिद्धि)
भासी छे तेवी तमने प्रमाण द्वारा सिद्ध करावी आपशुं, त्यारे
तमारो परसंबंधि ज्ञापकानुपलंभ नामनो हेतु सर्वज्ञनी नास्ति
साधवामां जूठो पड्यो. माटे तमारे परनी अपेक्षाए सर्वज्ञनी
नास्ति मानवी योग्य नथी. ए ज वात श्री श्लोकवार्तिकजीमां
कही छे. यथाः
परोपगमतः सिद्धस्स चेन्नास्तीति गम्यते
व्याघातस्तत्प्रमाणत्वेडन्योन्यं सिद्धो न सोऽन्यथा ।।२७।।
(प्र. अ. पानुं४१फूटनोट)
वळी तमे कहेशो के‘जगतमां सर्वने ज सर्वज्ञ देखवानो
उपाय भास्यो नथी वा सर्वज्ञ दीठा नथी, तेथी सर्वसंबंधी
सर्वज्ञनी नास्ति कहीए छीए’ तेने पूछीए छीए के
तमने
सर्वने सर्वज्ञ न देखवानो निश्चय केवी रीते थयो? त्यारे ते कहे
अर्थ :‘सर्वज्ञने जणावनारुं प्रमाण परने (माराथी अन्य
व्यक्तिने) उपलब्ध नथी, माटे सर्वज्ञ नथी’; एम कारण
आपवामां आवे तो ताराथी अन्य व्यक्ति तो हुं पण छुं के जेने
सर्वज्ञने जणावनारुं प्रमाण उपलब्ध छे. ए रीते अन्य
व्यक्तिओनी मान्यतामां परस्पर व्याघात थतो होवाथी अन्य
व्यक्तिनी मान्यता द्वारा पण सर्वज्ञनो अभाव थतो नथी.