Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
छे के‘हुं सर्वना चित्तनो निर्णय करीने कहुं छुं’ त्यां अमे
कहीए छीए केजे सर्वना चित्तने जाणे ते ज सर्वज्ञ, तो तमे
सर्वना चित्तने जाण्युं!
हवे तमारी सर्वना चित्तने जाणवानी शक्तिनी परीक्षा
करी लईशुं. जो तमे दूरक्षेत्रनी तथा घणा काळनी जो तमे देख्या
वगरनी स्थूल वात पण बतावी देशो, तो तमारुं सर्वना चित्तनुं
जाणवापणुं साचुं मानी लेशुं. जो तमाराथी दूर क्षेत्रनी तथा
घणा काळनी वात बतावी शकाती नथी तो तमने सर्वना चित्तनुं
ज्ञान थयुं छे, एम केवी रीते मानीए? अने जो थयुं छे तो
तमारो सर्वसंबंधिज्ञापकानुलंभ नामनो हेतु तो सदोष थयो.
कह्युं छे के
सर्वसम्बंधि तद्बोद्धं किंचिद्बोधैर्न शक्यते
सर्वबोद्धास्तिचेत्कश्चित्तदवोद्धा किं निषिध्यते ।।१५।।
(श्लोकवार्तिक प्र. अ. पानुं१४)
ए प्रमाणे तमारा सर्व संबंधिज्ञापकानुपलंभ नामना
हेतुने जूठ ठराव्यो. त्यारे ते कहे छे के‘ए तो जाण्युं, परंतु
परसंबंधिज्ञापकानुपलंभ तो त्यारे जूठा थाय के ज्यारे तमने जे
प्रकारना प्रमाण द्वारा सर्वज्ञनुं अस्तित्व भास्युं छे, ते प्रकारथी
अर्थ :जो सर्वज्ञना अस्तित्वने जणावनारुं प्रमाण सर्वने प्राप्त
नथी, एम कहो तो ते सर्व संबंधी जाणवुं. अल्पज्ञानथी थई शके
नहि; अने जो ते सर्व संबंधी जाणवुं थई शके, तो पछी कोई सर्वज्ञ
होई शके ए वातनो निषेध केम करवामां आवे छे?