सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ६९
अमने पण दर्शावो. ज्यारे अमने अस्तित्वनो साचो निश्चय
थई जशे त्यारे अमे शा माटे परसंबंधिज्ञापकानुपलंभ नामना
हेतुने साचो मानीशुं? ए तो सहज ज पोतानी मेळे जूठ थई
जशे.’ त्यारे तेने कहीए छीए केः – जो तमने सर्वज्ञना
अस्तित्वनो निश्चय करवानी अभिलाषा छे, तो तमने जे
अप्रमाणनां चश्मा लागी रह्यां छे तेने उतारीने प्रमाणनां चश्मा
लगावो; कारण के – अप्रमाणज्ञानमां वस्तुनो साचो निर्णय
सर्वथा थाय ज नहि पण प्रमाणज्ञानथी ज यथार्थनिर्णय थवो
कह्यो छे, शास्त्रमां ए ज कह्युं छे केः —
✽
‘प्रमाणादिष्टसंसिद्धिरन्यथातिप्रसंगतः ।
(प्रमाणपरीक्षा पानुं – ६३)
अर्थात् – प्रमाणथी ज पोताना इष्टनी भला प्रकारथी
सिद्धि थाय छे. तथा जो एम न मानीए तो प्रमाण अने
अप्रमाणनो विभाग न रहे अने तेथी सर्वने इष्टनी साची
सिद्धि थवाथी अतिप्रसंग (अतिव्याप्ति) नामनो दोष आवे,
माटे वस्तुनी साची सिद्धि प्रमाणथी ज थवी मानी अप्रमाणनां
चश्मा दूर करवा योग्य छे. त्यारे तेणे कह्युं के – मने
अप्रमाणज्ञाननुं स्वरूप बतावो के जेने जाणीने हुं दूर करुं!
त्यारे तेने उत्तर आपीए छीए के —
✽अर्थ : — प्रमाणथी ज इष्टनी भला प्रकारे सिद्धि थाय छे.
बीजी रीते अनिष्टनी पण सिद्धि थवाथी अतिप्रसंगे दोष
आवशे.