७० ]
[ सर्वज्ञ सत्तास्वरूप
जे ज्ञान द्वारा वस्तुनुं स्वरूप अयथार्थ भासे ते ज्ञाननुं
नाम ज अप्रमाणज्ञान छे, तेना त्रण भेद छे. संशय, विपर्यय
अने अनध्यवसाय. त्यां वस्तुनो निर्णय करवामां साचा लक्षणनो
आश्रय तो न आवे अने १सपक्ष तथा २परपक्षमां ३नियत जे
४साधारणधर्म तेना आश्रयथी निर्णय करे, तो त्यां बंने पक्ष
प्रबल भासे त्यारे शिखिल अर्थांकित थई बेतरफी ज्ञाननुं रहेवुं
तेनुं नाम संशयज्ञान छे. वळी विपरीत एटले उलटा लक्षणना
आश्रयथी वस्तुना स्वरूपनो निर्णय करवो अर्थात् अन्यथा
गुणोमां यथार्थबुद्धि करवी तेनुं नाम विपर्ययज्ञान छे. तथा ज्ञेय,
ज्ञानमां तो आवे पण पछी अभिप्राय, स्वरूप इत्यादिनो
निर्णय न करवो तेनुं नाम अनध्यवसायज्ञान छे. एवा
दोषसहित ज्ञान वडे वस्तुना साचा स्वरूपनो निश्चय न थाय.
त्यारे ते कहे छे के – सर्व वस्तुओनुं साचुं स्वरूप तो
केवलज्ञान विना सर्वथा न भासे, तो केवली विना बधानुं ज्ञान
१. सपक्ष = ज्यां साध्य रहेवानो निश्चय होय तेने सपक्ष कहे छे.
दा.त. लीला बळतणथी मळेली अग्निवाळुं रसोईघर (ज्यां
साध्य धूमाडो होवानी चोक्कसता छे).
२. विपक्ष = ज्यां साध्य न होवानो निश्चय होय. दा.त. अग्निथी
तपेलो लोढानो गोळो (ज्यां साध्य धूमाडो न होवानो
निश्चय छे.)
३. नियत = रहेनार.
४. साधारणधर्म = सपक्ष अने विपक्ष बन्नेमां रहेनार.