सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ७९
११. अपादानने साधन करी साध्यनो निश्चय करवो;
जेम के – कोई लडाई करीने घरे जतो हतो तेने देखी निश्चय
करवो के आ घरे जईने लडशे, तेने अपादानरूपहेतु कहे छे.
१२. आधारने आधेयनो निश्चय करवो, जेम के – कोई
सारा खेतरनुं नाम सांभळी तेमां उत्पन्न थवावाळा चोखाना
सारापणानो निश्चय करवो, इत्यादि ते आधाररूप साधन छे.
१३. संबंधने साधन करी निश्चय करवो ते संबंधरूप
साधन छे; जेमके – खराब संबंध द्वारा एवो निश्चय करवो के –
‘आ वस्तु खावा योग्य नथी, वा आ पुरुषने खराब मनुष्योनो
संबंध छे, तेथी आ व्यसनी छे’ इत्यादि संबंध साधन छे.
१४. कार्यनी प्रारंभरूप क्रिया द्वारा कार्यना भलापणा के
बूरापणानो निश्चय करवो; जेम के वीणा आदिनी वागवारूप
क्रियाथी गावारूपकार्यनो निश्चय करवो, ते क्रियारूप साधन छे.
१५. स्वामिरूप साधन वडे वस्तुनो निर्णय करवो; जेम
के – मुनिराजने जोके भोजनना शुद्ध – अशुद्धपणानो निश्चय नथी
आव्यो तो पण जैनीश्रावकनुं घर ओळखी श्रावकना घरे आहार
करे छे. अहीं कोई प्रश्न करे के – भोजननी शुद्धतानो निर्णय
कर्या सिवाय मुनि आहार केवी रीते करे? तेना उत्तर – दान
देनार जैनी छे. हवे जेने जिनदेवनो निश्चय छे तथा जिनदेव
ज जेना स्वामि छे, तेने त्यां आहार अशुद्ध न होय. ए प्रमाणे
स्वामिरूप साधन छे.