Sattasvarup-Gujarati (Devanagari transliteration).

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सर्वज्ञ सत्तास्वरूप ][ ८१
वळी, साध्य तो मालुम न होय पण साधन मालुम
होय, तेथी ए साधनथी साध्यनो निश्चय करवो ते
अनुमानप्रमाण छे. आ अनुमानप्रमाणना स्वार्थानुमान तथा
परार्थानुमानरूप बे भेद छे. त्यां प्रमाणना अनुमानरूप
परिणमेला ज्ञाननुं नाम स्वार्थानुमान छे, तेनां त्रण अंग छे
धर्मी, साध्य अने साधन. तेनुं (आ त्रणनुं) ज्ञान थतां
स्वार्थानुमान थाय छे. त्यां जे वस्तुमां साध्यपणुं होय तेने धर्मी
कहे छे अने ते प्रसिद्ध ज छे. वळी शक्य, अभिप्रेत अने
अप्रसिद्ध एवा त्रण लक्षणोने धारण कर्या होय ते साध्य छे.
जे प्रमाणतानो निर्णय थवा योग्य होय ते शक्य छे, जे
प्रमाताने इष्ट होय तथा प्रमातानो अंतरंगअभिप्राय लगावी
निर्णय करवा योग्य होय ते अभिप्रेत छे, तथा जे प्रगट न
होय ते अप्रसिद्ध छे. ए प्रमाणे त्रण लक्षण जेमां होय ते
साध्य छे. जेनाथी साध्यनुं ज्ञान थाय अने अन्य प्रकारथी न
थाय ते साधन छे. त्यां पोताना ज्ञानमां साधनना बळथी
धर्मीमां साध्यनो निश्चय करवो ते स्वार्थानुमान छे, तथा अन्यने
पोताना वचन द्वारा अनुमाननुं स्वरूप कहेवुं वा अनुमान वडे
सिद्ध करवा योग्य वाक्य अन्यने कहेवुं, ते परार्थानुमान छे.
तेमां पंडितोना संबंधमां बे अंग अंगीकार करवा योग्य
छे, प्रतिज्ञा अने हेतु. त्यां साध्यसहित धर्मीनां वचन छे ते
प्रतिज्ञा छे. जेम के
‘आ पर्वत अग्नि संयुक्त छे, तथा जेनाथी
धर्मीमां साध्यनो द्रढ निश्चय थई जाय एवां जे साधननां